एस वी सुनील पुरुषों के सीनियर हॉकी टीम के एक प्रतिभाशाली और अनुभवी फॉरवर्ड हैं। ये अनुभवी खिलाडी 2016 रियो ओलंपिक्स में जानेवाली पुरुषों की टीम का हिस्सा होंगे। ये रही उनसे जुड़ी 10 बातें:
- सोमवारपेट वियालाचर्या सुनील का जन्म 6 मई 1989 को कर्नाटक के कोडागु गांव में हुआ था। छोटी उम्र में उन्हें कई मुश्किल परिस्थियों से गुजरना पड़ा। उनके पिता बढ़ई का काम किया करते थे और सुनील और उनके भाई की जिम्मेदारी उनकी मां शांता पर आ गयी। बाद में उनका भाई सोनार बन गया।
- 4 साल की उम्र में उनकी मां गुज़र गयी और फिर उन्हें खुद का ख्याल रखना पड़ा। बढ़ते हुए उन्हें कई मुश्किलों का सामान करना पड़ा और कई बार पैसों की तंगी के कारण उन्हें अपने हाथ पीछे करने पड़े। लेकिन बचपन से उनमें हॉकी के लिये जुनून था और तब वे हॉकी स्टिक के बदले लड़की से इसे खेला करते थे।
- साल 2007 में चेन्नई के एशिया कप ने सुनील को पुरुषों की सीनियर टीम में जगह मिली। वें अपनी टीम के लिए सौभाग्यशाली साबित हुए क्योंकि भारत ने वो टूर्नामेंट जीत लिया और उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें टीम ऑफ़ द टूर्नामेंट से घोषित किया गया।
- वे साल 2008 में सुल्तान अजलान शाह कप में दूसरा स्थान हासिल करनेवाले टीम का हिस्सा थे।
- उनके करियर का ख़राब समय 2010 में आया जब विश्व कप के पहले उनके घुटने में चोट लग गयी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने करियर को वापस पटरी पर लाने के लिए भरपूर कोशिश की। करीब एक साल बाद उन्होंने वापस भारतीय टीम में जगह बनाई। "मुझे गहरी चोट लगी थी और मैं सीढियां भी नहीं चढ़ सकता था। मैं डॉ बी नायक और फिजियो श्रीकांत आयंगर का धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी वजह से मैं चोट से उबर पाया। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ने भी इलाज के खर्च के लिए 4 लाख रुपये की राशि से मेरी मदद की।"
- भारत के इस फॉरवर्ड ने साल 2011 में अपना लोहा मनवाया जब चैंपियंस चैलेंज में उन्होंने एक बेहतरीन गोल किया। "फ़िलहाल मैं अपने करियर के सबसे अच्छे दौर से गुज़र रहा हूं, लेकिन फिर भी मैं अपनी एक्यूरेसी पर काम कर रहा हूँ।"
- वे टीम के एक अनुभवी खिलाडी हैं और उनके नाम 187 मैचों में 59 गोल हैं।
- हॉकी इंडिया लीग के पहले संस्करण में उन्हें पंजाब वारियर्स ने $ 42,000 में ख़रीदा। उनकी बेस वैल्यू $13, 000 थी।
- ये प्रतिभाशाली स्ट्राइकर टीम के अहम अंग हैं और उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने उनके लिया ढेर सारी तारीफें बटोरी हैं। क्लेरेंस लोबो, भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम के सहायक कोच "उनकी रेडिंग कमाल की है और वें विरोधी डिफेंडर पर दवाब बनाते हैं। सर्किल के अंदर उनका एक टच खेल कमाल का है।"
- घरेलू मैचों में सुनील कर्नाटक और सर्विस के लिए खेलते हैं। वें हॉकी को अपना 200% देते हैं, इसका सबूत हमे 2010 के एलन शाह कप से मिलता है, जहाँ पर उनके पिता के देहांत के बावजूद उन्होंने टूर्नामेंट का एक भी मैच नहीं गंवाया।
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