1) नवनीत सिंह - नवनीत उत्तर प्रदेश के मोदीनगर में 13 सितंबर 1994 को जन्में और दिल्ली में पढ़ाई-लिखाई की। जिस स्कूल में नवनीत पढ़ते थे वहीं उनके पिता क्लर्क का काम करते थे। इस स्कूल में दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी के लिए लॉन बॉल ग्रीन्स बनाया गया था। नवनीत ने यहीं लॉन बॉल्स के खेल को सीखने और खेलने की शुरुआत की। साल 2018 में नवनीत ने चीन में हुई एशियन लॉन बॉल्स चैंपियनशिप्स में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीते। नवनीत ने 2019 में एशिया पेसेफिक चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज जीत विश्व कप के लिए भी क्वालिफाय किया। नवनीत पेशे से कमर्शियल पायलट हैं।
2) सुनील बहादुर - 45 साल के सुनील झारखंड के कोडरमा के निवासी हैं। बचपन से ही खेलों में रुचि रखने वाले सुनील शौकिया तौर पर लॉन बॉल्स की तरफ आकर्षित हुए और धीरे-धीरे इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेना शुरु किया। सुनील ने 2010, 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में देश की ओर से भाग लिया है। सुनील मौजूदा समय में झारखंड के पुलिस विभाग में कार्यरत हैं।
3) दिनेश कुमार - दिनेश भी सुनील की तरह झारखंड के रहने वाले हैं और रांची में स्थित आर के आनन्द बॉलिंग ग्रीन में प्रैक्टिस करते हैं। दिनेश ने साल 2008 में लॉन बॉल्स की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पेयर्स का गोल्ड जीता था। दिनेश ने भी 2010, 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लिया था और वो भी झारखण्ड पुलिस में काम करते हैं।
4) चंदन कुमार सिंह - चंदन कुमार का जन्म बिहार के मुंगेर में हुआ और वर्तमान में वो भी झारखंड के निवासी हैं। चंदन के दादाजी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रह चुके हैं। बचपन से खेलों के शौकीन रहे चंदन ने झारखण्ड की राजधानी रांची जाकर ग्रेजुएशन किया और यहीं लॉन बॉल्स के खेल से परिचय हुआ। साल 2008 में चंदन ने पहली बार लॉन बॉल्स की नेशनल प्रतियोगिता में भाग लेकर सिल्वर मेडल हासिल किया। साल 2011 में 34वें नेशनल गेम्स में चंदन ने ट्रिपल्स और फोर्स में गोल्ड जीता। 2015 और 2017 में एशियन चैंपियनशिप में भी चंदन गोल्ड जीत चुके हैं। बर्मिंघम गेम्स चंदन के चौथे कॉमनवेल्थ खेल थे।
कॉमनवेल्थ खेलों की शुरुआत से लॉन बॉल्स की स्पर्धा इसका हिस्सा रही है। भारत ने पहली बार इसी बार बर्मिंघम खेलों में लॉन बॉल्स में पदक जीते हैं। पुरुष फोर्स टीम से पहले भारत की महिला फोर्स टीम ने गोल्ड जीतकर इतिहास रचा।