शूटिंग की ही तरह भारत ने विश्वस्तरीय धनुर्धारियों को भी सफलता अर्जित करते देखा है, जिन्होंने लक्ष्य भेद देश का समय समय पे गौरव बढ़ने का कार्य किया है। 90 के दशक में लिम्बा राम भारत के अनुभवी ओलंपियन थे, जिन्होंने एशियाई तीरंदाजी चैंपियंस में पदक जीते थे। जयंत तालुकदार, राहुल बनर्जी, तरुणदीप राय और मंगल सिंह चंपिया ने भी अंतराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीत कर भारत को पिछले डेढ़ दशक से गौरवान्वित किया है। हाल के वर्षों में अभिषेक वर्मा, संदीप कुमार और रजत चौहान ने बुसान के 2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। रजत चौहान 2015 के विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में हमारे देश के लिए पहले व्यक्तिगत रजत पदक विजेता बने। महिलाओं के वर्ग में, दीपिका कुमारी को हमारे राष्ट्र की अब तक की बेहतरीन धनुर्धर के तौर पर देखा किया जाता है। कुमारी एक पूर्व जूनियर विश्व चैंपियन रही हैं और आईटीएएफ विश्व कप (2011, 2012, 2013) में रजत पदक भी जीती हैं। कुमारी ने डोला बनर्जी, बोम्बेला देवी लैशराम और चेक्रोवोलु स्वुरो जैसी अनुभवी तीरंदाजों के साथ मिलकर काम किया और विश्व स्तर पर एक मजबूत भारतीय महिला टीम का निर्माण किया है। 2015 की विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में रिमिल बुरीयुली, दीपिका कुमारी और लक्ष्मीरीनी माजी की भारतीय टीम ने रिकर्व स्पर्धा (टीम) में रजत पदक जीता। इन खेलो के अलावा भी ऐसे कई खेल हैं जहां भारतीय खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। मसलन कैरम विश्व विजेता ए मारिया इरुडायम (1991 और 1995) भी हैं पर दुर्भाय से उन्हें वो पहचान नहीं मिली जो अपने खेल में महारथी रहे खिलाड़ी को मिलनी चाहिए। लेखक: गौतम लालोट्रा अनुवादक: राहुल पांडे