शूटिंग को हमारे देश में निशानेबाज़ी हमेशा से एक पहचान मिली है। करनी सिंह, भीम सिंह, भुवनेश्वरी कुमारी और राजा रणधीर सिंह इनमे उल्लेखनीय नाम थे जिन्होंने 60 और 70 के दशक में राष्ट्रीय शूटिंग सर्किट पर प्रभाव बनाये रखा। भारत ने हमेशा से बेहतरीन निशानेबाज़ों को उभरते हुए देखा पर कोई भी सफलता हासिल नहीं कर सका जब तक कर्नल (तब मेजर) राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एथेंस में 2004 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत के लिए रजत पदक जीता था। इसके बाद अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक (10 एम एयर राइफल) जीत कर भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम क्षण जोड़ दिया। अन्य निशानेबाज़ों में गगन नारंग एक सफल निशानेबाज़ के रूप में उभरें है जिन्होंने आईएसएसएफ वर्ल्ड मीट्स में भारत के लिए पदक जीते है और 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर अपने गौरव को और बढ़ाया। पूर्व पिस्तौल निशानेबाजों जसपाल राणा और समरेश जंग ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक जीते। हाल के वर्षों में सूबेदार विजय कुमार ने 2012 के ओलंपिक में रजत पदक जीता था और वही सेना के एक अन्य निशानेबाज जीतू राय एक नई शूटिंग सनसनी के रूप में देखे गए और पहले ही एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक (50 एम पिस्टल) जीतकर अभूतपूर्व सफलता अर्जित की। इसके अलावा 2015 आईएसएसएफ वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में जीतू ने एक रजत पदक भी जीता। महिला निशानेबाजों की बात करें तो अंजली वेदपाठक 1990 के दशक में भारत की अग्रणी शूटर हुआ करती थी। वेदपाठक ने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक जीते।