प्रकाश पदुकोण भारत के पहले विश्वस्तरीय शटलर थे और 70 के दशक के अंत में भारतीय बैडमिंटन का दबदबा बनाये रखा। 1980 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतकर उन्होंने एक अलग पहचान बनाई और फिर 1983 में आईबीएफ विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक 1981 के विश्वकप में पुरुष एकल का खिताब भी जीतने में सफल रहे। इसके बाद 90 के दशक में पुलेला गोपीचंद का नाम उभरा, जिन्होंने 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन शीर्षक जीतकर इतिहास को दोहराया। गोपीचंद का खेल में एक महत्वपूर्ण योगदान भी रहा क्यूंकि बैडमिंटन के खेल की गुड़वत्ता प्रदान करने के लिए उन्होंने एक अकादमी खोली औरअकादमी में बेहतरीन युवा खिलाड़ियों का निर्माण हुआ। मधुमिता बिष्ट 80 के दशक में देश की शीर्ष महिला शटलर बनके उभरी और फिर कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों की पदक विजेता अपर्णा पोपट ने 90 के दशक में एक अलग पहचान बनाई। हाल के वर्षो में साइना नेहवाल एक कामयाब खिलाड़ी बनके उभरी हैं। न सिर्फ कई दफा सुपर सीरीज बल्कि 2015 के विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप फाइनल में रजत पदक भी जीतीं और 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता रही हैं। इसके अलावा ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा, लगभग एक दशक के लिए अग्रणी युगल जोड़ी रही हैं। हाल फिलहाल में पीवी सिंधू और पी कश्यप, किदंबी श्रीकांत जैसे ऐसे खिलाड़ी उभरें है जिन्होंने विभिन मंचों पर सफलता पा कर देश का गौरव बढ़ाने का कार्य किया है।