ओलंपियन साजन प्रकाश की नज़र देश में तैराकी को लेकर सोच बदलने की है

Irshad
साजन प्रकाश (Sajan Prakash)
साजन प्रकाश (Sajan Prakash)

इडुक्की के छोटे से गांव थोड़ुपूज़ा में जन्में साजन प्रकाश (Sajan Prakash) छोटी सी उम्र में ही तमिलनाडु के नेईवेली में आ गए थे। उनकी मां जो राष्ट्रीय स्तर की ट्रैक एंड फ़ील्ड एथलीट थीं, वह नेईवेली नगर निगम में नौकरी करती थीं।

उनकी मां नौकरी के साथ साथ लगातार प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती रहती थीं, उसी दौरान साजन प्रकाश भी स्टाफ़ क्वार्टर में हर तरह के खेलों में ख़ुद को व्यस्त कर चुके थे।

चाहे वह बैडमिंटन हो, दौड़ हो या फिर तैराकी साजन प्रकाश कुछ भी खेलने और नया करने से हिचकिचाते नहीं थे। कुछ पूर्व और मौजूदा खिलाड़ियों के भी ट्रेनिंग कैंप में आने से प्रकाश को फ़ायदा पहुंचता रहता था।

लेकिन इसी उम्र में अब वक़्त आ गया था जब प्रकाश को किसी एक खेल को चुनना था।

साजन ने तैराकी में अपना करियर बनाने की ठानी और ये फ़ैसला आगे चलकर बिल्कुल सही साबित हुआ, इसके बाद साजन का करियर जो जोसेफ़ और साजी सेबस्टियन की कोचिंग में निखरता गया।

लेकिन कुछ ही दिनों बाद साजन का ये शानदार सफ़र थम गया था, जब नेईवेली ऑथिरीटी ने स्विमिंग में ध्यान देना छोड़ दिया था। प्रकाश को अब ट्रेनिंग में काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता था, जिसके बाद प्रकाश के दोनों ही कोच ने सलाह दी कि उन्हें देश के सबसे बेहतरीन स्विमिंग ट्रेनिंग सेंटर में से एक बासवनगुड़ी एक्वेटिक सेंटर (BAC) जाना चाहिए।

बैंगलोर ने साजन बनाया साजन का करियर

कई लोग कहते हैं कि बैंगलोर तैराकों को तैयार करने के लिए बेहतरीन शहर है, और ये सही भी है। पिछले कुछ सालों में BAC ने भारत को न सिर्फ़ अच्छे तैराक दिए हैं, बल्कि कई ओलंपियन भी यहीं से निकले हैं। फिर चाहे वह हकीमुद्दीन हबीबउल्ला (2000) हों या फिर निशा मिले (2000), शिखा टंडन (2004), रेहान पोंचा (2008) या फिर गगन एपी (2012) हों, इस सेंटर से लगातार ओलंपियन निकलकर आए हैं।

वह साल 2012 था जब प्रकाश भी इसका हिस्सा बनें, शुरुआती कुछ दिन इस तैराक के लिए बहुत मुश्किल थे क्योंकि प्रकाश छोटी दूरी के तैराक थे। जबकि BAC की ट्रनिंग काफ़ी लंबी होती है और ये लंबी दूरी के तैराकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रकाश ने इसे अपनी आदत में शुमार कर लिया था।

हालांकि, इसके बाद कुछ तैराकों की मदद से जिसमें रेहान, गगन और दूसरे भी शामिल थे, जल्द ही प्रकाश ने अपने आपको इसमें ढाल लिया था और फिर एक बेहतरीन तैराक बन चुके थे। क़ामयाबी ने भी प्रकाश का पीछा नहीं छोड़ा और तुरंत ही साजन को सीनियर नेश्नल में मौक़ा मिल गया था। प्रकाश ने कई अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया लेकिन साजन के करियर का टर्निंग प्वाइंट साल 2015 रहा जब उन्होंने राष्ट्रीय खेलों में ख़ुद को देश का सर्वश्रेष्ठ साबित किया।

राष्ट्रीय पहचान

केरला को राष्ट्रीय खेलों की मेज़बानी मिली और यहां साजन ने धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 6 गोल्ड और 3 रजत पदक अपने नाम किए। जो भारतीय इतिहास में किसी भी तैराक का सबसे ज़्यादा है।

ओलंपिक चैनल के साथ बातचीत में इस पर साजन प्रकाश ने कहा, “ये मेरा सिर्फ़ दूसरा राष्ट्रीय खेल था, लेकिन तब मैं ये नहीं जानता था कि राज्य सरकार की ओर से पदक हासिल करने वालों को नगद इनाम भी मिलता है। मुझे इसकी जानकारी 2015 में ही मिली थी, जब हम आर्थिक तौर पर जूझ रहे थे। तब मुझे इस बात का अहसास था कि अगर मैंने पदक जीता तो मेरी कुछ परेशानियां ज़रूर कम हो जाएंगी।“

लेकिन ये सिर्फ़ पैसों के लिए नहीं था, राष्ट्रीय खेल शुरू होने से कुछ महीने पहले मैं सीनियर नेश्नल में भी बहुत अच्छा करके आया था। सिर्फ़ पदक ही नहीं जीता था बल्कि कई रिकॉर्ड्स भी बनाए थे। यही वजह थी कि मैंने यहां भी अच्छा किया।‘’ :साजन प्रकाश

ओलंपिक में तैराकी में पदक जीतना भारत का ये अब तक के सबसे मुश्किल सपनों में से एक है, लेकिन प्रकाश भारत में तैराकी को पूरी तरह से बदलने की सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। प्रकाश का पहला सपना है कि टोक्यो 2020 के लिए क्वालिफ़ाई करना, अपने साथ वह युवाओं को भी बड़ा सोचने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “मैं यही बताना चाहता हूं कि ओलंपिक में पहुंचना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, पदक जीतना अहम है और यही सभी का सपना होना भी चाहिए। और ये तभी मुमिकिन है, जब हम अपने देश में खेल की संस्कृति को बढ़ाएं। शुरू से ही हमें कड़ी मेहनत करने को तो समझाया जाता है लेकिन कभी ये नहीं समझाया जाता कि ‘स्मार्ट’ मेहनत कैसे करें। यही एक सोच है जो हमें बदलना होगा।“

साजन की इस सोच को सच करने में समय ज़रूर लग सकता है, लेकिन इसकी शुरुआत हो चुकी है।

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