भारत में कुश्ती का नाम आते ही जिन पहलवानों का नाम जेहन में सबसे पहले आता है, उनमें बजरंग पुनिया भी शामिल हैं। टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले बजरंग ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में 65 किलोग्राम भार वर्ग का गोल्ड जीत लगातार दूसरी बार कॉमनवेल्थ खेलों में सोने का तमगा हासिल किया है। पिछले 10 सालों में कुश्ती से जुड़ा लगभग हर मेडल जीत चुके पुनिया देश के सबसे सफलतम पहलवानों में से एक हैं।
26 फरवरी 1994 को हरियाणा के झज्जर के खुदान गांव में जन्में बजरंग ने 7 साल की उम्र से ही कुश्ती करनी शुरु कर दी थी। पिता खुद पहलवान थे तो बेटे को भी कुश्ती ही सिखाई। परिवार गरीब था इसलिए किसी और खेल में बेटे को डालने के लिए संसाधन नहीं थे। ऐसे में कुश्ती और कबड्डी जैसे देसी खेल बजरंग के बचपन के साथी बने। बजरंग को कुश्ती से इतना ज्यादा प्यार था कि कई बार स्कूल से भागकर आते और गांव में बने छोटे अखाड़े में जाकर दांव-पेंच सीखने लग जाते थे।
2008 में 14 साल की उम्र में बजरंग दिल्ली के मशहूर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचें और यहां से अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को पंख देने की तैयारी की। साल 2013 में एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में बजरंग ने 60 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज जीत पहला अंतरराष्ट्रीय मेडल हासिल किया। इसी साल विश्व चैंपियनशिप में बजरंग ने ब्रॉन्ज जीता। 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में बजरंग ने सिल्वर मेडल हासिल किया और इसी साल हुए एशियन गेम्स में भी उन्हें सिल्वर मेडल ही मिला।
2017 की एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में बजरंग गोल्ड जीतने में कामयाब रहे। 2018 के गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों में बजरंग ने 65 किलोग्राम भार वर्ग में देश को गोल्ड मेडल दिलाया। एशियन गेम्स में भी बजरंग ने गोल्ड जीता। साल 2019 में बजरंग को खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बजरंग के लिए सबसे बड़ा पल पिछले साल टोक्यो ओलंपिक में आया जब उन्होंने कांस्य पदक जीत अपना पहला ओलंपिक मेडल हासिल किया।
अब 2022 के कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड जीत बजरंग ने अपना मेडल बचाने में कामयाबी पाई है। बजरंग ने बेहद आसानी से गोल्ड जीता और फाइनल से पहले तक एक भी अंक नहीं गंवाया था। फाइनल में उन्होंने महज दो अंक ही गंवाए। 28 साल के बजरंग ने जीत के बाद मैच देखने आए भारतीय दर्शकों का उनके सपोर्ट के लिए धन्यवाद किया।