जानिए कैसा रहा है रवि कुमार दहिया का ओलंपिक तक का सफ़र ?

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रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya) - तस्वीर साभार: Out
रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya) - तस्वीर साभार: Outlook

रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya), भारतीय रेसलिंग का नया नाम जो अब किसी पहचान का मोहताज नहीं क्योंकि इस खिलाड़ी ने न सिर्फ़ नूर सुल्तान वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में भारत के लिए कांस्य पदक जीता, बल्कि टोक्यो ओलंपिक में भी जगह बना ली।

लेकिन इस उपलब्घि के बाद भी उनकी प्रतिक्रिया इतनी मामूली थी जो इस बात को साबित करती है कि दंगल में खेलने वाला ये पहलवान आज भी मिट्टी से ही जुड़ा है। उन्होंने इस जीत के बाद मीडिया से पूछे गए सवाल और बधाई संदेश का जवाब देते हुए कहा था।

‘’मेरे ट्रेनिंग सेंटर में कई ऐसे पहलवान हैं, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता है, मैंने क्या किया है ?’’

चलिए हम आपको बताते हैं कि असल में 22 वर्षीय ये पहलवान हैं कौन जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धमाकेदार अंदाज़ में अपनी छाप छोड़ी है।

सीखने की ललक

रवि दहिया भी उसी ट्रेनिंग सेंटर से आते हैं जिसने भारत को कई दिग्गज पहलवान दिए हैं, दहिया नई दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हैं। ये वही ट्रेनिंग सेंटर है जहां से सुशील कुमार (Sushil Kumar) और योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) जैसे ओलंपिक मेडलिस्ट निकलकर आए हैं।

दहिया हरियाणा के एक छोटे से गांव नहरी के रहने वाले हैं जो सोनीपत में स्थित है। एक ऐसा राज्य जिसने भारत को एक से बढ़कर एक दिग्गज पहलवान दिए हैं, जहां से योगेश्वर दत्त के अलावा फ़ोगाट बहनें और बजरंग पूनिया भी आते हैं।

बचपन से ही रवि दहिया ने बड़े सपने संजोए रखे थे, जब वह 10 साल के थे तब से ही वह सतपाल सिंह के अंदर ट्रेनिंग कर रहे थे। सतपाल सिंह (Satpal Singh) की कोचिंग में ही सुशील कुमार ने भी भारत को दो ओलंपिक पदक दिलाए हैं।

दहिया के इरादे शुरू से ही रेसलिंग में करियर बनाने को लेकर बिल्कुल साफ़ थे।

बाप की मेहनत को बेटे ने दिया रंग

दहिया की दिवानगी तो रेसलिंग को लेकर शानदार थी, लेकिन आर्थिक तौर पर वह कमज़ोर परिवार से आते थे इसलिए उनके पिता दूसरों के खेतों में काम किया करते थे। इतना ही नहीं एक ऐसा भी वक़्त था जब रवि दहिया के पिता अपने गांव से क़रीब 40 किमी दूर दिल्ली तक दूध बेचने जाया करते थे। ताकि दहिया की स्पेशल डाइट का ख़र्चा भी निकल सके।

छत्रासाल की ओर से जितनी हो सकती थी उतनी मदद मिला करती थी, लेकिन जब एक रूम में 20 बच्चे होते थे तो वह बेहद मुश्किल हो जाता था। लेकिन इन चीज़ों ने भी दहिया को आगे बढ़ने से रोका नहीं।

दहिया के पिता राकेश अपने बेटे को नूर सुल्तान में कांस्य पदक जीतता हुआ नहीं देख पाए। क्योंकि उस वक़्त वह खेत में काम कर रहे थे, जो वह पिछले दशक से लगातार करते आ रहे हैं ताकि उनके बेटे रवि को लक्ष्य हासिल करने में कोई परेशानी न हो।

जैसा आप बोते हैं वैसा काटते हैं

22 वर्षीय रवि दहिया के सामने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक मैच में एशियन चैंपियन ईरान के रेज़ा अत्रिनागारशी थे। जिन्हें रवि ने एकतरफ़ा मुक़ाबले में 6-3 से शिकस्त देकर अपने पहले ही वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत लिया था।

दहिया ने इससे पहले 2015 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी रजत पदक जीता था और फिर उन्होंने फ़्रैंचाईज़ी आधारित रेसलिंग लीग में भी हिस्सा लिया था।

2017 सीनियर नेश्वल के दौरान रवि दहिया के घुटने में चोट उबर आई थी, जो उन्हें वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में लगी थी। हालांकि इसके बाद वह इन चोटों से उबर कर बाहर आए और धमाकेदार वापसी की।

2018 में रोमानिया में हुए अंडर-23 वर्ल्ड चैंपियनशिप में रवि दहिया ने रजत पदक जीता और उसी साल सीनियर नेश्नल में भी दूसरे स्थान पर रहे। 2019 में दहिया पहली बार सीनियर एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेने पहुंचे और वहां एड़ी में चोट लगने के बावजूद वह पांचवें स्थान पर रहे।

रवि की लंबाई 5 फ़िट 7 इंच है जो एक पहलवान के लिए ज़्यादा मानी जाती है, और यही उन्हें अपने प्रतिद्वंदियों के ख़िलाफ़ मदद भी पहुंचाती है। लेकिन सिर्फ़ यही उनकी ताक़त नहीं है बल्कि उनका बड़ा हथियार है उनकी मानसिक शक्ति।

ESPN के साथ बात करते हुए उनके कोच विरेन्दर कुमार ने ये कहा, ‘’रवि की सबसे बड़ी ताक़त है, उनकी मानसिक शक्ति, साथ ही साथ एक मज़बूत शरीर के अलावा उनके पास गज़ब की स्टेमिना और फुर्ती भी है।‘’

दहिया का अगला लक्ष्य ?

दहिया का लक्ष्य है अपने हीरो हसन यज़दानी को पीछे छोड़ते हुए ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतना। कज़ाख़स्तान में रवि के प्रदर्शन को देखने के बाद ये साफ़ है कि भारत रेसलिंग में अब हर तरह से तैयार है। भारत को रेसलिंग का एक और हीरा हरियाणा से मिल चुका है, और क्या पता टोक्यो 2020 इस हीरे की चमक को और बढ़ा दे।

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