रैसलिंग में कोई भी मैच हो, लेकिन सबमें एक बात समान होती है, और वो है फाइट। अब ये फाइट आप रिंग में करे, उसके बाहर करे, ऊपर करे, स्टील केज पर करे या चाहे जैसे करे, हर एक का मकसद सिर्फ एक ही होता है और वो है एंटरटेनमेंट। इसकी वजह से कई बार कुछ ऐसे भी स्टिपुलेशन बन जाते हैं जिनके बारे में जानकर या पढ़कर ही हँसी आने लगती है। आज हम आपको बताते है ऐसे ही 10 मैचों के बारे में:
#10 स्काफोल्ड मैच
इस मैच के लिए रिंग पर ही एक मंच बनाया गया था, जिसमें जो भी सामने वाले को पहले नीचे फेंक देगा वो मैच जीत जाएगा। इसमें इतना रिस्क था कि सामने वाले की जान भी जा सकती थी, लेकिन यही तो इस मैच का फन था। सोचने वाली बात है कि इस मैच ने ना तो कभी क्रिएटिव टीम ना ही फैंस को इम्प्रेस किया। भला ऐसे कौन लड़ता है? #9 ऑब्जेक्ट ऑन अ पोल मैच इन मैच का औचित्य तो आजतक नहीं समझ आया। एक रैसलर रिंग के एक किनारे पर लगे हुए एक पोल पर से चीज़ें उतारता है। जो कामयाब हो जाए, वो विजेता घोषित किया जाता था। इस मैच में जीतने के लिए भी बड़ी अजीब सी चीज़ें होती थी, जैसे कि कॉन्ट्रैक्ट ऑफ वायग्रा। वायग्रा के लिए कौन मैच लड़ता है भाई? #8 गल्फ ऑफ मेक्सिको मैच जैसा कि नाम से ही पता चलता है, इस मैच का अंत सिर्फ एक ही तरीके से हो सकता है, और वो है कि आप अपने अपोनेंट कप गल्फ ऑफ मेक्सिको में फेंक दें। वैसे तो इस तरह के मैचेज से ज़्यादा अच्छे मैचेज़ ECW में हो रहे थे, लेकिन इस मैच को खेला गया था सीएम पंक के साथ, जब उन्होंने चावो गुरेरो को इसमें फेंक दिया था। मैच को और ज़बरदस्त बनाने के लिए इन दोनों ने इसको रिंग से शुरू किया और गल्फ पर जाकर खत्म किया। #7 ब्लाइंडफोल्ड मैच रैसलिंग में हर इंद्री का काम करना ज़रूरी है, लेकिन अगर कोई आपकी आँखें ही बंद कर दे तो? आँख के अंधे नाम नैनसुख वाला हाल हो जाएगा उस रैसलर का, है कि नहीं। आखिरकार जब एक रैसलर इस तरह की स्टिपुलेशन का हिस्सा हो तो ये पता चलता है कि उसने कितना बड़ा रिस्क लिया है। आखिरकार लोगों की उपेक्षा और इस मैच के अंदर कोई कमाल मोमेंट ना मिलने की वजह से बाद में इसे बंद कर दिया गया। #6 शार्क केज मैच
इस मैच के नाम पर मत जाइए क्योंकि इसमें किसी शार्क को नहीं रखा जाता है और ना ही ये शार्क जितना बड़ा केज होता है। इस केज में तो 2 रैसलर्स बराबर लड़ भी नहीं सकते। फिर ये कैसा शार्क केज हुआ? लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब इसमें मैचेस होते थे और उस वक्त इसे एक प्रयोग की तरह किया गया। बाद में इसको बंद कर दिया गया क्योंकि इसमें कोई मज़ा नहीं था। #5 केनेल फ्रॉम हेल मैच 1999 में एटीट्यूड एरा के दौरान WWE ने एक ऐसा मैच करवाया जो किसी की समझ में ही नहीं आया। इस मैच में बिग बॉस मैन और ऎल स्नो एक केज में लड़ रहे थे और रिंग के चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते थे, वो भी कोई ऐसे वैसे नही, बल्कि बिल्कुल गार्ड डॉग्स, और उनका काम सिर्फ ये था कि कोई भी रैसलर रिंग से बाहर ना आ जाए। किसी तरह ऎल ने ये मैच जीता, लेकिन WWE इससे फैंस का दिल नहीं जीत सकी। आखिरकार उन्हें इसे बंद करना पड़ा। #4 रॉ बाउल इस मैच का मज़ा ये था कि WWE ने अपनी टीम्स को अलग अलग रंग की कॉलेज जर्सी पहनाई थी, इसके साथ ही रेफरी भी उसी किस्म की जर्सी में थे। टीम्स को एक समय दिया गया था, और ये पूरा मैच अमेरिकन फुटबॉल की तरह हुआ था, लेकिन जब इन मैच का कनेक्ट फैंस से नही बना तो इसको बंद कर दिया गया। #3 लायन डेन मैच WWE ने UFC की तर्ज पर एक मैच करने की सोची लेकिन वो इसमें कामयाब ही नहीं हो पाए। वैसे ये बात तो माननी पड़ेगी की इंटरनेशनल लेवल पर जो नाम WWE का है, उसके आस पास अब UFC का भी होने लगा है। इस मैच में कमी सिर्फ ये थी कि ना तो रेफरी और ना ही कैमरामैन ये समझ पा रहे थे कि रिंग के अंदर क्या चल रहा है, क्योंकि इसकी फेंस बहुत बड़ी थी। #2 इलेक्ट्रिक केज मैच
इस मैच का इस्तेमाल TNA ने खुद को प्रमोट करने के लिए किया था। इस मैच में दोनो टीमों को एक दूसरे से ना सिर्फ लड़ना था बल्कि ये भी देखना था कि कहीं वो रिंग केज को ना छू लें। अगर ऐसा होता तो उन्हें ज़बरदस्त करंट लगता। इसको स्पेशल इफेक्ट्स से और भी ज़्यादा बड़ा बनाने की कोशिश की गई। इस मैच में टीम 3D और लैटिन अमेरिकन एक्सचेंज आमने सामने थी, और आखिरकार इस मैच के बाद TNA ने इसे दोबारा नही दोहराया। #1 ट्रिपल केज मैच ये सुनने में जितना अच्छा लग रहा है, असल में ये उतना ही खतरनाक है। इस मैच के लिए जेफ़ जेर्रेट, डायमंड डैलस पेज और डेविड को भेजा गया। कमाल की बात ये है कि इस मैच में सबसे ऊपर की रिंग बहुत छोटी थी, और इनके मैच की चैंपियनशिप बेल्ट उसमें ही थी। उससे नीचे वाली में वो औज़ार थे जिनका इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वी पर किया जा सकता था। सबसे नीचे वाली रिंग में असली लड़ाई शुरू होती थी। और आखिर में वो सबसे ऊपर वाले तक जाती थी। इस मैच को पढ़कर शायद आपको रोमांच लग रहा हो, लेकिन असल में ऐसा नहीं था। लेखक: रंजीत रवीन्द्रन, अनुवादक: अमित शुक्ला