यह उन लाइनों में से एक है जो ऑस्टिन अपनी बात को खत्म करते समय कहते थे। अगर कोई ऑस्टिन के इन शब्दों के बाद भी कुछ कहने की हिम्मत करता था तो उसे ज्यादातर एक स्टनर या ऐसा ही कोई घातक दांव झेलना पड़ता था। बस ऑस्टिन का मूड में रहना जरूरी था।
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