पोलियो भी नहीं रोक पाया सोनलबेन के इरादे, CWG में बनीं पैरा टीटी ब्रॉन्ज मेडलिस्ट 

सोनल महज 6 महीने की थीं जब उन्हें पोलियो हो गया था
सोनल महज 6 महीने की थीं जब उन्हें पोलियो हो गया था

पोलियो जैसी गंभीर स्थिति किसी भी इंसान को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी तोड़ देती है। लेकिन पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी सोनलबेन ने न सिर्फ पोलियो का डटकर सामना किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैरा टेबल टेनिस में देश का नाम भी रोशन किया है। सोनलबेन मनुभाई पटेल ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों की महिला एकल वर्ग 3-5 कैटेगरी में कांस्य पदक जीत देश की पदक संख्या में इजाफा किया।

15 सितंबर 1987 को गुजरात के विरामगाम में जन्मीं सोनल सिर्फ 6 महीने की थीं जब पोलियो से ग्रसित हो गईं। इससे उनके दोनों पैर और एक हाथ पर असर पड़ा। लेकिन बड़े होते हुए सोनल ने इसे जिंदगी के आड़े नहीं आने दिया। सोनल बचपन से ही टीचर बनने का सपना देखती थीं, लेकिन उनकी शारीरिक स्थिति के चलते उन्हें टीचर ट्रेनिंग के लिए एडमिशन नहीं मिला। फिर सोनल ने अहमदाबाद में एक ITI को ज्वाइन किया जहां दिव्यांग व्यक्ति थे और अलग-अलग खेल सीखते थे। बस यहीं से सोनल ने टेबल टेनिस में रुचि दिखाई और कुछ ही महीनों में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेते हुए सिल्वर जीत लिया।

सोनल ने 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ खेल और फिर 2010 के पैरा एशियन गेम्स में भाग लिया। दोनों गेम्स में सोनल टेबल टेनिस के क्वार्टरफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रहीं। सोनल ने 2020 के टोक्यो पैरालंपिक खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया और अब 2022 के कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीतकर अपने खेल का लोहा मनवाया है। खास बात ये रही कि जिस इवेंट में सोनलबेन ने ब्रॉन्ज जीता, उस स्पर्धा का गोल्ड भारत की ही भाविना पटेल ने जीता और पोडियम पर दो भारतीय ध्वज देखने को मिले।

सोनलबेन ने जीत के बाद अपना मेडल अपने पति रमेश चौधरी को समर्पित किया जो खुद पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। साथ ही इस मेडल को अपने परिवार, कोच और पूरे देश के नाम भी किया।

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