आम तोड़ने के लिए निशाना लगाते लगाते दीपिका कुमारी बन गईं तीरंदाज़ी की वर्ल्ड चैंपियन 

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दीपिका कुमारी (Deepika Kumari)
दीपिका कुमारी (Deepika Kumari)

दीपिका कुमारी (Deepika Kumari)का करियर बहुत ही उतार चढ़ाव से भरा रहा है, कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में धमाकेदार आग़ाज़ करने वाली दीपिका कुमारी 2012 तक तीरंदाज़ी में दुनिया की टॉप रैंक की खिलाड़ी बन गईं थीं। लेकिन तभी 2012 लंदन ओलंपिक में दीपिका पहले दौर से भी आगे जाने में संघर्ष करती नज़र आईं, यानी दो साल के अंदर ही दीपिका ने खेल के दोनों पहलूओं को बहुत क़रीब से देख लिया था।

दीपिका के सफ़र की शुरुआत है ‘आम’ बात

झारखंड के एक छोटे से गांव रातू चट्टी की सुनसान गलियों में एक लड़की पेड़ों पर लगे पके हुए आम को तोड़ने के लिए निशाना लगाती रहती थी। उस वक़्त शायद ही उस लड़की अहसास भी था कि एक दिन यही निशाना उन्हें दुनिया का सबसे बेहतरीन तीरंदाज़ बना देगा।

दीपिका झारखंड के बहुत ही छोटे से गांव में पैदा हुईं थी, उनके पिता शिवनारायण महतो ऑटोरिक्शा चलाते थे और मां गीता पास के ही एक अस्पताल में नर्स थीं। आर्थिक हालत अच्छी नहीं होने की वजह से दीपिका के परिवार को हर छोटी बड़ी ज़रूरतों के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन इसके बावजूद दीपिका के मां-बाप ने कभी भी अपनी बेटी को खाने पीने की कोई कमी नहीं होने दी थी, अपनी बेटी के लिए उन्होंने कई बार खाना भी छोड़ा और भूखे रहे।

तीरंदाज़ी में दीपिका का करियर भी बेहद इत्तेफ़ाक से बना है, दीपिका छुट्टियों में अपनी दादी के घर गईं हुईं थीं। जहां उनके भाई ने दीपिका को पास में ही एक आर्चेरी ऐकेडमी के बारे में बताया, जहां खिलाड़ियों को मुफ़्त में ट्रेनिंग दी जाती थी।

दीपिका को ये बात अच्छी लगी कि बिना किसी पैसों के ख़र्च से वह एक नए खेल को सीख सकती हैं, और फिर उन्होंने तुरंत ही अपना नाम उस आर्चेरी ऐकेडमी में लिखवा लिया। शुरआत में दीपिका के पिता समाज के लोगों की वजह से इसके ख़िलाफ़ थे, लेकिन दीपिका की मां ने उन्हें हौसला दिया और समझाया कि इन चीज़ों से बाहर निकलकर तुम साहसी बनो।

दीपिका ने आर्चेरी सीखते ही इसमें अच्छा करने लगीं, शायद इसकी वजह आम तोड़ने की उनकी आदत ही थी।

इसके बाद वह कुछ ज़िला स्तरीय और राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में भी शिरकत करने लगीं थी और फिर जीत भी उन्हें मिलने लगी थी।

इसी तरह के एक टूर्नामेंट में दीपिका की मुलाक़ात धर्मेन्द्र तिवारी से हुई जो भारतीय आर्चेरी टीम के कोच थे। और उन्होंने दीपिका को सलाह दी कि वह जमशेदपुर आ जाएं और टाटा आर्चेरी ऐकेडमी में ट्रेनिंग करें, जहां से उनके करियर को एक नया आयाम मिल सकता है।

धीरे-धीरे हाथ लगी क़ामयाबी

टाटा आर्चेरी ऐकेडमी में जाने के बाद दीपिका ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा, और अब यहां से दीपिका के लिए सब बदल चुका था। वह अब बड़े बड़े टूर्नामेंट में भी अपनी जीत का डंका लगातार बजाती जा रहीं थीं। 2009 में दीपिका ने कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवा दिया था।

उसी साल दीपिका का चयन अमेरिका में होने वाली यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी हुआ, जहां भी उन्होंने जीत हासिल की। इस छोटी सी उम्र में भी कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में दीपिका भारत की सबसे बड़ी उम्मीद की तरह मानी जा रहीं थीं।

दीपिका ने इन उम्मीदों को ज़ाया नहीं होने दिया और उन्होंने व्यक्तिगत और टीम इवेंट दोनों में ही भारत के लिए गोल्ड जीते। नई दिल्ली अपने घरेलू दर्शकों के सामने ऐसा प्रदर्शन करने के बाद दीपिका ने गुआंगज़ू में हुए 2010 एशियाई खेलों में भी भारत के लिए कांस्य पदक जीता।

वर्ल्ड कप गोल्डेन गर्ल

दीपिका कुमारी के नाम अब तक व्यक्तिगत और टीम इवेंट मिलाकर कुल 6 वर्ल्ड कप गोल्ड मेडल हैं। उन्होंने सबसे पहला गोल्ड 2011 शंघाई वर्ल्डकप में जीता था, ये मेडल उन्हें टीम इवेंट में मिला था। एक साल बाद तुर्की में हुए वर्ल्डकप में दीपिका ने व्यक्तिगत इवेंट में भी गोल्ड मेडल हासिल कर लिया था।

तुर्की में जीत के बाद दीपिका दुनिया की नंबर एक आर्चर हो गईं थीं, और अब सभी की नज़र इस 18 वर्षीय लड़की पर लंदन ओलंपिक में थी।

लेकिन लंदन ओलंपिक में दीपिका उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकीं और पहले ही दौर में वह हारकर बाहर हो गईं।

हालांकि ओलंपिक में ख़राब प्रदर्शन दीपिका के लिए बहुत दिनों तक दिमाग़ में नहीं रहा क्योंकि अगले ही साल 2013 वर्ल्ड कप में भी दीपिका ने गोल्ड मेडल जीतते हुए साबित कर दिया था कि वह अभी बरक़रार हैं।

अगला साल दीपिका के लिए अच्छा नहीं रहा और वह राष्ट्रीय क्वालिफ़ायर्स में टॉप-4 से भी बाहर हो गईं थीं। जिसके बाद उन्हें भारतीय टीम से भी बाहर होना पड़ा, लेकिन उन्होंने इससे वापसी करते हुए 2014 वर्ल्डकप में एक बार फिर भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता और 4 सालों में ये दीपिका का वर्ल्डकप में चौथा गोल्ड मेडल था।

2015 वर्ल्डकप में भी दीपिका रनर अप रही भारतीय टीम का हिस्सा थीं, जिसके बाद भारत को 2016 रियो ओलंपिक के लिए टिकेट मिल गया था।

रियो की बुरी यादें

रियो 2016 में दीपिका ने अपने व्यक्तिगत इवेंट की शुरुआत शानदार की थी, जब उन्होंने लगातार दो मैच जीतते हुए राउंड ऑफ़ 16 में जगह बना ली थी। लेकिन फिर तेज़ हवाओं के बीच चाइनीज़ ताइपे की खिलाड़ी ने दीपिका का सपना बिखेर दिया और दीपिका 0-6 से हारते हुए व्यक्तिगत इवेंट से बाहर हो गईं थीं।

इसके बाद टीम इवेंट में भी दीपिका और उनकी साथी रैंकिंग राउंड में सातवें स्थान पर ही रहीं और इस तरह से रियो में भी दीपिका का ओलंपिक पदक का सपना अधूरा रह गया।

2019 में दीपिका ने वर्ल्डकप में गोल्ड मेडल जीता है, और अब दीपिका की नज़र टोक्यो ओलंपिक में भी रियो की यादों को पीछे छोड़ने पर है। दीपिका अपने पति और साथी तीरंदाज़ अतानु दास के साथ टोक्यो 2020 के लिए क्वालिफ़ाई कर चुकी हैं। देश में लगे लॉकडाउन के दौरान ही दीपिका कुमारी और अतानु दास रांची में शादी के बंधन में बंधे थे।

अब इस जोड़ी का निशाना इस साल टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में पदक जीतने पर है।

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