हम आपको तीरंदाज़ी (Archery) के नियम और क़ायदे बताने जा रहे हैं ताकि आप इस ओलंपिक खेल के बारे में वह सबकुछ जान सकें जो आपके लिए ज़रूरी है। तीरंदाज़ी में ज़रूरत होती है कौशल और एकाग्रता की, ताकि 70 मीटर दूर से एक तीरंदाज़ सीधे लक्ष्य पर निशाना लगा सके।
तीरंदाज़ी का खेल बिल्कुल साधारण है: और वह है तीर को लक्ष्य के ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब तक पहुंचाना।
ओलंपिक तीरंदाज़ी का जो लक्ष्य बोर्ड होता है उसकी चौड़ाई 122 सेंटीमीटर व्यास की होती है, जिनमें पांच अलग अलग रंगों की 10 स्कोरिंग रिंग बनी होती है। अंदर वाली रिंग का रंग सुनहरा होता है इसमें 10 या 9 अंक आते हैं। (10 का माप सिर्फ़ 12.2 सीएम व्यास का होता है जिसका आकार एक म्यूज़िक सीडी के बराबर होता है)। तीरंदाज़ लक्ष्य पर निशाना 70 मीटर की दूरी से लगाते हैं, जो कि एक ओलंपिक स्विमिंग पूल की लंबाई से भी ज़्यादा होती है।
ये बिना कहे समझने वाली चीज़ है कि इसके लिए ज़बरदस्त क्षमता की दरकार होती है, साथ ही साथ ये एक ऐसा खेल है जहां थोड़ा भी ध्यान भटका तो बड़ी चूक तय है। लिहाज़ा इसके लिए मानसिक तौर से मज़बूत होना लाज़िमी है। बेहतरीन शूटर्स लाजवाब एकाग्रता और मानसिक शक्ति के साथ बेहद कठिन परिस्थितियों में भी लक्ष्य पर निशाना साधने की क़ाबिलियत रखते हैं।
तीरंदाज़ी की शुरुआत क़रीब 10 हज़ार सालों पहले हुई थी, जब तीर और धनुष का इस्तेमाल शिकार और युद्ध के लिए किया जाता था, जिसके बाद इसे मध्ययुगीन इंग्लैंड में एक प्रतिस्पर्धी गतिविधि के रूप में विकसित किया गया। तीरंदाजी के कई प्रकार हैं, जिसमें लक्ष्य पर निशाना लगाना है, जहां प्रतियोगी एक सपाट सीमा पर स्थिर लक्ष्य पर निशाना लगाते हैं। फील्ड तीरंदाजी, जिसमें अलग-अलग और अक्सर बिना किसी तय दूरी के निशाना लगता है, ये आमतौर पर वुडलैंड और और आस पास के इलाक़ों में होती है।
सिर्फ़ लक्ष्य पर निशाना लगाना (टारगेट आर्चेरी) एक ओलंपिक खेल है, जो दुनिया भर के 140 से ज़्यादा देशों में खेली जाती है।
तीरंदाज़ी पहली बार ओलंपिक में पेरिस 1900 में शामिल हुई थी, हालांकि इसके 1908 के खेलों के बाद ड्रॉप कर दिया गया था। इसके बाद 1920 ओलंपिक में एक बार फिर तीरंदाज़ी को ओलंपिक में शामिल किया गया था, पर दोबारा इसे ख़त्म कर दिया गया। आख़िरकार 52 सालों के लंबे फ़ासले के बाद म्यूनिक 1972 में तीरंदाज़ी फिर से ओलंपिक में शामिल की गई और तब से अब तक लगातार आर्चेरी ओलंपिक का हिस्सा है। टोक्यो 2020 ओलंपिक में पुरुष और महिला के व्यक्तिगत इवेंट होंगे साथ ही साथ पुरुष, महिला और मिश्रित टीम इवेंट भी खेला जाएगा। मिश्रित टीम इवेंट ओलंपिक में पहली बार शामिल किया गया है।
ओलंपिक प्रतिस्पर्धा
पहले दौर में 64 एथलीट के बीच प्रतिस्पर्धा होती है जिसे रैंकिंग राउंड कहा जाता है। प्रत्येक प्रतिभागियों को 72 शॉट लगाने होते हैं जिसके बाद उनकी स्कोरिंग के आधार पर इन्हें एक से 64 तक की रैंकिंग दी जाती है। इसके बाद वे जोड़ी में अपनी रैंकिंग के हिसाब से खेलते हैं, जहां पहली रैंक का तीरंदाज़ 64वीं वरीयता प्राप्त तीरंदाज़ से मुक़ाबला करता है, इसी तरह दूसरी रैंकिंग का सामना 63वीं रैंकिंग के तीरंदाज़ से होता है और ये सिलसिला इसी तरह चला है।
ये सभी व्यक्तिगत मुक़ाबले करो या मरो के तर्ज़ पर होते हैं जहां हारने वाला प्रतियोगिता से बाहर होता जाता है। और जीतने वाला अगले दौर में बढ़ता जाता है, जिसके बाद आख़िरी बचे दो तीरंदाज़ों के बीच स्वर्ण पदक का मुक़ाबला होता है। सेमीफ़ाइनल में हारने वाले दोनों तीरंदाज़ कांस्य पदक के लिए एक दूसरे के ख़िलाफ़ भिड़ते हैं।
व्यक्तिगत मैचों का फ़ैसला सेट सिस्टम के हिसाब से होता है, प्रत्येक सेट में तीन एरो होते हैं। जिस एथलीट का स्कोर तीनों ही एरो के बाद सबसे ज़्यादा होता है, उसे दो सेट प्वाइंट्स मिलते हैं। अगर तीरंदाज़ों के बीच स्कोर बराबर होता है तो दोनों को ही एक एक सेट प्वाइंट मिलता है, जिस एथलीट को 6 सेट प्वाइंट पहले मिल जाते हैं वही विजेता होता है।
अगर पांच सेट के बाद भी स्कोर बराबर रहता है (5-5), तो प्रत्येक तीरंदाज़ को एक एक एरो शूट करना होता है। जिस एथलीट का तीर बिल्कुल लक्ष्य के क़रीब या लक्ष्य पर लगता है वही विजेता होता है।
टीम मैचों का भी फ़ैसला सेट सिस्टम के ही आधार पर किया जाता है, लेकिन इसमें प्रत्येक सेट 6 एरो का होता है न कि 3 का। जिस टीम को पहले पांच सेट प्वाइंट मिलते हैं जीत उसी टीम की होती है।
अगर यहां भी स्कोर लाइन 4-4 से बराबर होती है तो प्रत्येक टीम के तीरंदाज़ को एक एक तीर शूट करने को मिलते हैं, जिस टीम के तीरंदाज़ का निशाना बिल्कुल लक्ष्य पर या सबसे क़रीब होता है जीत उसी टीम को मिलती है।
इन प्रारुपों से करो या मरो की स्थिति उतपन्न होती है, जिसके लिए मानसिक तौर पर भी उतनी ही ताक़त चाहिए जितना की शारिरीक तौर पर। हर तीर को निशाने पर लगाने से पहले एक तीरंदाज़ को अपनी हृदय गति पर भी नियंत्रण रखना होता है, अपनी एकाग्रता बढ़ानी होती है और संयम से काम लेना बेहद ज़रूरी होता है। शारिरीक और मानसिक तौर पर दबाव के साथ खेलने से एक तीरंदाज़ के प्रदर्शन पर भी असर पैदा करता है, कुछ तीरंदाज़ दबाव में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं तो कुछ इन परिस्थितियों को झेल नहीं पाते और बिखर जाते हैं।
ओलंपिक में दबदबा
ओलंपिक आर्चेरी की बात करें तो रिपबल्कि ऑफ़ कोरिया का इसमें दबदबा क़ायम है, रियो 2016 गेम्स में कोरिया के तीरंदाज़ों ने सभी चार इवेंट में स्वर्ण पदकों पर कब्ज़ा जमाया था। उनकी महिला टीम की तो बात ही निराली है, उन्होंने सिओल 1988 के बाद अब तक महिला तीरंदाज़ी के सभी ओलंपिक गोल्ड पर कब्ज़ा जमाती आ रही हैं।
उनकी सबसे दिग्गज तीरंदाज़ हैं की बायो बे, जिन्होंने लंदन 2012 के टीम और व्यक्तिगत दोनों ही इवेंट में स्वर्ण पदक जीता था और अपने रियो 2016 में भी की बायो बे ने टीम में गोल्ड और व्यक्तिगत में कांस्य पदक जीता था।
पुरुष तीरंदाज़ी में रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया के बाद यूएसए का दबदबा सबसे ज़्यादा है। ब्रैडी एलिसन ने रियो 2016 के व्यक्तिगत इवेंट में कांस्य पदक जीता था, जबकि टीम इवेंट में उन्हें रियो 2016 और लंदन 2012 में रजत पदक हासिल हुआ था।