सालों से हम यही देखते और सुनते आ रहे हैं कि ओलंपिक में पदक जीतना भारत के लिए बेहद मुश्किल है। हालांकि कुछ ने इस मिथ्या को तोड़ते हुए पदक जीता है और रातों रात स्टार बन गए हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो इसे जीतने के बेहद क़रीब आकर भी चूक गए।
एक नज़र डालते हैं पांच ऐसे भारतीय एथलीट पर जो पदक के पास आकर भी उसे हासिल न कर पाए:
अभिनव बिंद्रा: दूसरी बार पदक के क़रीब थे और फिर चूक गए...
2008 में अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra) ने इतिहास रचते हुए भारत को ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाया था, जब उन्होंने बिजींग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफ़ल में इसे अंजाम दिया था। 8 साल बाद रियो ओलंपिक 2016 में भी वह इसके क़रीब पहुंच चुके थे और आज़ादी के बाद व्यक्तिगत तौर पर दो पदक जीतने वाले सुशील कुमार (Sushil Kumar) के अलावा दूसरे भारतीय बनने के पास खड़े थे।
ब्राज़िल की राजधानी में हो रहे फ़ाइनल राउंड में आख़िरी 8 मेंस शूटर निशाना लगा रहे थे, एक समय बिंद्रा इस इवेंट में नंबर-2 पर चल रहे थे। लेकिन तभी कुछ अजीब शॉट्स की वजह से बिंद्रा अब यूक्रेन के शूटर के साथ तीसरे स्थान पर संयुक्त तौर पर खड़े थे। लेकिन इसके बाद बिंद्रा ने 10 प्वाइंट का शॉट मारा जबकि यूक्रेन के शूटर ने 10.5 प्वाइंट का शॉट मारने के साथ ही बिंद्रा को नीचे कर दिया था।
और फिर फ़ाइनल इवेंट में बिंद्रा नंबर-5 पर रहते हुए पदक से चूक गए, हालांकि इसके बाद भी अभिनव बिंद्रा इस पल को सबसे शानदार पलों में से एक मानते हैं।
दीपा कर्माकर: जब दीपा की चमक से रोशन हुआ भारत
रियो 2016 में बहुत ही कम अंतर से एक और भारतीय खिलाड़ी ने पदक मिस किया था। और वह थीं दीपा कर्माकर (Dipa Karmakar), जो ओलंपिक में हिस्सा ले रही पहली भारतीय जिमनास्ट थीं।
वॉल्ट के फ़ाइनल में पहुंचना ही अपने आप में उपलब्धि थी, लेकिन दीपा यहीं नहीं रुकीं थी उन्होंने फ़ाइनल राउंड की शुरुआत ‘तसुकहारा’ मूव से की थी जिसमें उन्हें 14.866 प्वाइंट्स मिले थे। उन्हें पता था कि अगर पदक जीतना है तो कुछ अलग और बेहतरीन करना होगा इसलिए अगले राउंड में उन्होंने ‘प्रोदुनोवा’ मूव चलना चाहा।
जहां दीपा ने सबकुछ बेहतरीन किया लेकिन उनकी लैंडिंग ने उनसे पदक छीन लिया।
जॉयदीप कर्माकर: लंदन की कहानी
लंदन ओलंपिक 2012 में जॉयदीप कर्माकर (Joydeep Karmakar) से किसी ने कुछ ख़ास उम्मीद नहीं की थी, यहां तक कि जॉयदीप वह नहीं थे जिसने भारत के लिए ओलंपिक कोटा का क्वालिफ़िकेशन जीता हो, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय राइफ़ल संघ (NRAI) ने भेजा था, यानी उनपर अच्छे प्रदर्शन का दबाव शुरू से था।
बंगाल के इस शूटर ने 50 मीटर राइफ़ल प्रोन इवेंट की शुरुआत अच्छी की और फिर फ़ाइनल राउंड में भी जगह बनाई, अब भारतीय खेल प्रेमियों की नज़रें जॉयदीप पर थीं। पदक के मुक़ाबले में जॉयदीप ने 10.1, 10.6, 10.7, 10.5, 10.7, 10.2, 10.00, 10.2, 10.7 और 10.4 प्वाइंट्स हासिल करते हुए कुल 699.1 के स्कोर के साथ चौथे पायदान पर खड़े थे। लेकिन तभी स्लोवेनिया के राजमंड डेबेवेक ने 701.00 के स्कोर के साथ उन्हें पीछे छोड़ दिया और कांस्य पदक हासिल कर गए।
पीटी ऊषा: सेकंड्स के 100वें हिस्से से गंवाया पदक
भारत की महिला धावक पी टी ऊषा (PT Usha) ने जब 1984 में हुए लॉस एंजेल्स ओलंपिक गेम्स के लिए क्वालिफ़ाई किया था तो वह किसी उपलब्धि से कम नहीं था। लेकिन लॉस एंजेल्स में जो हुआ वह किसी ने शायद ही सोचा भी होगा।
पायोली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर पी टी ऊषा ने टूर्नामेंट से पहले एक बेहतरीन घरेलू सीज़न से होकर आईं थीं, और फिर प्री ओलंपिक इवेंट में अमेरिका की जूडी ब्राउन को हराकर पी टी उषा के हौसले बुलंद थे।
ये हौसला ही था जिसने पी टी ऊषा को ओलंपिक के पहले राउंड की हीट में शानदार फ़िनिश कराया और वह 400 मीटर हडल्स में दूसरे स्थान पर रहीं। सेमीफ़ाइनल में उन्होंने ब्राउन को एक बार फिर मात देकर फ़ाइनल के लिए क्वालिफ़ाई कर लिया था। ऊषा यहां भी पदक के बेहद क़रीब आ गईं थीं और फिर सेकंड के 100वें भाग (1/100) सेकंड्स से वह रोमानिया की क्रिस्टिएना कोजोकारु से पीछे रह गईं जिन्हें कांस्य पदक मिला था।
मिल्खा सिंह: महंगा पड़ गया दांव
मिल्खा सिंह (Milkha Singh)
1960 रोम ओलंपिक से पहले भारत के लिए व्यक्तिगत पदक जीतने वाले सिर्फ़ के डी जाधव (KD Jadhav) थे जिन्होंने 1952 ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीता था। लेकिन 1960 ओलंपिक में ये क़रीब क़रीब तय लग रहा था कि मिल्खा सिंह (Milkha Singh) उस रिकॉर्ड को तोड़ देंगे, और कांस्य से भी आगे निकल जाएंगे।
400 मीटर दौड़ में हिस्सा ले रहे मिल्खा सिंह, बहुत ही आसानी से अपनी सारी रेस जीतते हुए फ़ाइनल के लिए क्वालिफ़ाई कर लिया था। फ़ाइनल राउंड में भी मिल्खा सिंह ने बेहतरीन शुरुआत की।
लेकिन 250 मीटर तक पहुंचने के बाद उनकी धीमी होने की रणनीति बहुत महंगी पड़ गई, क्योंकि फिर फ़ानल स्ट्रेच में मिल्खा वह तेज़ी नहीं ला पाए। नतीजा ये हुआ कि एक समय गोल्ड मेडल जीतने के क़रीब दिख रहे मिल्खा सिर्फ़ 0.1 सेकंड्स से कांस्य भी चूक गए।
... इस तरह बहुत नज़दीक होने के बाद भी, बहुत दूर रह गए !