भारत की पैरा शटलर मानसी जोशी से प्रेरित बार्बी डॉल बनी थी, जिसके बाद वह टाइम मैगजीन के कवर पर नजर आईं। इसके बावजूद भारतीय पैरा शटलर मानसी जोशी की आवाज में कोमलता बरकरार है। मानसी जोशी के विचारों में स्पष्टता, भावनाओं पर नियंत्रण और शब्दों में पकड़ बरकरार रही। वो चाहे तो खुद को सातवें आसमान पर पा सकती हैं, लेकिन मानसी जोशी का मानना है कि शांत रहना सबसे समझदारीभरा कदम है।
मानसी जोशी को टाइम मैगजीन ने नेक्स्ट जनरेशन लीडर 2020 की लिस्ट में शामिल किया है और वह उनके एशिया कवर पर नजर आ रही हैं। टाइम मैगजीन की इस लिस्ट में नजर आने वाली मानसी जोशी पहली पैरा एथलीट और भारत की पहली एथलीट हैं।
मानसी जोशी ने टीओआई से बातचीत करते हुए कहा, 'टाइम मैगजीन द्वारा नेक्स्ड जनरेशन लीडर की लिस्ट में शामिल होकर काफी सम्मानित महसूस कर रही हूं। मेरा निजी विचार है कि पैरा एथलीट को टाइम मैगजीन के कवर पर देखने से लोगों की दिव्यांग्यता के प्रति सोच बदलेगी। इसके अलावा भारत और एशिया में पैरा स्पोर्ट्स के प्रति भी लोगों का रवैया बदलेगा। साथ ही मेरे से प्रेरित बार्बी डॉल बनने से युवा लड़कियों को प्रेरणा मिलेगी और वह इसकी मदद से अपने युवा दिमागों को अलग-अलग क्षेत्रों में उपयोग कर सकती हैं। पहले हम शामिल और अनेकता की बात करते थे अब बड़ा फर्क आएगा कि अगली पीढ़ी में हम कुछ करके दिखाएं।' याद हो कि पिछले साल मानसी जोशी ने विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था।
दमदार आत्मविश्वासी मानसी जोशी का मानना है कि विश्व चैंपियनशिप खिताब ऐसा है, जिसे उन्होंने सालों की कड़ी मेहनत के बाद हासिल किया। मानसी जोशी ने मेडल के महत्व के बारे में बात करते हुए कहा, 'मेरे ख्याल से यह मेरे लिए बड़ी चीज है। मैंने एक साल से ज्यादा समय तक इसके लिए कड़ी मेहनत की।' इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग ग्रेजुएट मानसी जोशी ने 9 साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। मानसी जोशी को बैडमिंटन से बहुत प्यार है और वह इसे अपने छोटे भाई के साथ खेलती थीं।
मानसी जोशी का सड़क सुरक्षा पर ध्यान
2011 में सड़क दुर्घटना के कारण मानसी जोशी की पूरी जिंदगी बदल गई। मानसी जोशी ने चोट के कारण अपना बायां पैर गंवा दिया और करीब 45 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं। मगर मानसी जोशी कहती हैं कि वह सिर्फ उन्हीं चीजों पर ध्यान देती हैं, जो उनके नियंत्रण में हो। 2018 एशियाई गेम्स की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट मानसी जोशी ने कहा, 'मैं यही कह सकती हूं कि अपने लाभ के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों को बदल दिया है। मैं हालांकि, सड़क सुरक्षा के बारे में बात करना चाहती हूं। मेरा मानना है कि सरकार, प्रशासकों को भी सड़क सुरक्षा के बारे में जरूर बात करना चाहिए।'
31 साल की मानसी जोशी ने अपनी अधिकांश जिंदगी मुंबई में बिताई। उन्होंने 2013 में दोबारा बैडमिंटन खेलना शुरू किया। यह अंतर-ऑफिस टूर्नामेंट था, जिसमें वह जीती। इससे मानसी जोशी के लिए दरवाजे खुले। मौजूदा विश्व नंबर-2 मानसी जोशी ने कहा, 'मैं एक और पैरा शटलर नीरज जॉर्ज से मिली, जिन्होंने मुझे प्रतिस्पर्धी स्तर पर खेल खेलने को कहा। मैं नीरज का शुक्रिया अदा करना चाहूंगी, जिन्होंने उस समय मुझे प्रेरित किया।'