इंडियन प्रीमियर लीग के 12वें सीजन का अभी पहला हफ्ता भी नहीं बीता है कि दो बड़े विवाद सामने आ गए हैं। रविचंद्रन अश्विन द्वारा किए गए मांकडिंग रन आउट का विवाद थमा ही नहीं था कि एक और नए विवाद ने अब जन्म ले लिया है। ये एक ऐसा विवाद है जिसमें दो बड़ी टीमें शामिल थीं।
दरअसल बेंगलुरू के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और मुंबई इंडियंस के बीच आईपीएल का 7वां मैच खेला जा रहा था। आखिरी गेंद पर आरसीबी को जीत के लिए 7 रन चाहिए थे और सामने गेंदबाज थे लसिथ मलिंगा। मलिंगा ने एक बेहतरीन गेंद डाली और बल्लेबाज शिवम दूबे उस गेंद पर सिर्फ 1 रन ही ले सके। मैच खत्म हो गया और मुंबई इंडियंस के सभी खिलाड़ी इस रोमांचक जीत पर खुशी मनाने लगे। सभी खिलाड़ी भी एक दूसरे से हाथ मिलाने लगे और ड्रेसिंग रूम की तरफ लौटने लगे। लेकिन इसी बीच टीवी पर रीप्ले दिखा कि मलिंगा ने जो आखिरी गेंद डाली थी वो नो बॉल थी। हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मैच खत्म हो चुका था इसलिए उस पर अमल नहीं किया जा सकता था।
इस रीप्ले को जब आरसीबी के कप्तान विराट कोहली ने देखा तो वे भी काफी गुस्सा हो गए। उन्होंने साफतौर पर कहा कि हम आईपीएल जैसा बड़ा टूर्नामेंट खेल रहे हैं, ये कोई क्लब गेम नहीं है, जहां इस तरह की गलती हो। अंपायर को अपनी आंखे खुली रखनी चाहिए थी। मुंबई इंडियंस के कप्तान रोहित शर्मा ने भी वही बात दोहराई और कहा कि इस तरह की गलती बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। आपको बता दें कि जिस अंपायर से ये गलती हुई उनका नाम एस रवि है और वे आईसीसी के एलीट पैनल के अंपायर हैं।
अब यहां पर सवाल ये उठता है कि अंपायर केवल बल्लेबाज के आउट होने पर ही क्यों नो बॉल चेक करते हैं। क्या जरूरी नहीं है कि ऐसे अहम मौकों पर भी नो बॉल चेक की जाए। क्योंकि ऐसे मैच में सिर्फ 1 गेंद हार और जीत का फर्क पैदा कर सकती है। सोचिए अगर आरसीबी को नो बॉल मिला होता तो उन्हें आखिरी गेंद फ्री हिट मिलती, जिस पर छक्का या चौका भी लग सकता था। अंपायर क्यों सिर्फ आउट होने पर ही नो बॉल चेक करते हैं।
ये पहला वाकया नहीं है जब नो बॉल को लेकर इस तरह का विवाद हुआ हो। इससे पहले 21 दिसंबर 2018 को बांग्लादेश और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए तीसरे टी20 मैच में भी एक वाकया हुआ था, जिस पर काफी विवाद हुआ था। वेस्टइंडीज द्वारा निर्धारित 191 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए बांग्लादेश ने काफी तेज शुरुआत की। हालांकि पारी के चौथे ओवर में ओशेन थॉमस की गेंद पर बेहद आक्रामक बल्लेबाजी कर रहे लिटन दास कैच आउट हो गए लेकिन अंपायर तनवीर अहमद ने इसे नो बॉल करार दे दिया। रीप्ले में देखने पर साफ पता चल रहा था कि ये गेंद नो बॉल नहीं थी और ओशेन थॉमस का पैर लाइन के थोड़ा इधर था। इससे पहले वाली गेंद भी अंपायर ने नो बॉल करार दे दी थी लेकिन वो भी नो बॉल नहीं थी। अब लगातर 2 गलत नो बॉल दिए जाने की वजह से वेस्टइंडीज के कप्तान कार्लोस ब्रैथवेट नाराज हो गए।
उस मैच में अंपायर दो गलत नो बॉल दे दी थी और यहां पर अंपायर ने नो बॉल होने के बावजूद नहीं दी। तो क्या थर्ड अंपायर को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए कि गेंद नो बॉल थी। हालांकि जब तक मैदान पर मौजूद अंपायर रेफर नहीं करेंगे तब तक थर्ड अंपायर खुद से कुछ नहीं कर सकता। इस तरह की गलतियां मैदान में कई बार अंपायरों से हो चुके हैं। घरेलू क्रिकेट में ऐसा कई बार हो चुका है लेकिन जब आईपीएल जैसे बड़े टूर्नामेंट में ऐसा कुछ होता है तो फिर ज्यादा हंगामा होता है। भविष्य में ऐसी गलतियां ना हों इसके लिए जरूरी है कि केवल बल्लेबाज के आउट होने पर ही नहीं बल्कि इस तरह के नाजुक मौके पर भी थर्ड अंपायर द्वारा नो बॉल चेक की जाए। क्योंकि एक गेंद किसी भी टीम के लिए बहुत बड़ा फर्क पैदा कर सकती है।
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