घुड़सवार फ़ौआद मिर्ज़ा (Fouaad Mirza), 20 सालों में ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई करने वाले पहले भारतीय घुड़सवार।
फ़ौआद ने कुछ साल पहले ही घुड़सवारी में भारत के 36 साल के सूखे को ख़त्म किया था, जो एशियन गेम्स में चला आ रहा था। उन्होंने एशियन गेम्स के व्यक्तिगत और टीम दोनों ही इवेंट में रजत पदक जीता था।
2019 में उनके इस प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी नवाज़ा था, लेकिन ये सब इस जाबांज़ घुड़सवार के लिए इतना आसान नहीं रहा।
ओलंपिक चैनल के साथ बातचीत में फ़ौआद मिर्ज़ा ने कहा था, “मेरा वह घोड़ा जिसके साथ मैंने रजत जीता था, सिग्नॉरिटी मेडिकॉट 2019 की शुरुआत में घायल हो गया था, जो मेरे लिए एक बड़ा झटका था। मैं उसी पर अपनी क्वालिफ़िकेशन की उम्मीद लगाए बैठा था, लेकिन बदक़िस्मती से वह प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सका।”
ख़ून में ही है घुड़सवारी
फ़ौआद मिर्ज़ा की ज़िंदगी में घोड़ों का साथ हमेशा रहा है, उनके पिता भी एक घुड़सवारी पशु चिकित्सक रह चुके हैं। वह एक ऐसे परिवार से हैं जिनके पूर्वजों में मैसूर राज्य का एक शाही परिवार शामिल है।
‘’पांच साल की उम्र से ही मैं घुड़सवारी कर रहा हूं, और यही था जो मैं हमेशा चाहता था कि स्कूल के बाद करूं, और धीरे धीरे मेरी यही दीवानगी करियर में बदल गई थी। एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी, कर्नल राजेश पट्टू, जिन्होंने मुझे सर मार्क टॉड के अंतर्राष्ट्रीय करियर के कुछ पुराने कैसेट दिए थे और वह मैं ख़ूब देखता था। ये मैंने इतनी बार देख रखा है कि आपको मिनट दर मिनट बता सकता हूं कि क्या हुआ था।‘’
जब वह स्कूल में थे, तब उन्हें एहसास हुआ कि वह भी इस खेल में अपना करियर बना सकते हैं।
"मैंने पढ़ाई करने का विकल्प चुना और मनोविज्ञान और व्यवसाय में डिग्री प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चला गया और छुट्टियों के दौरान जब घर वापस आने पर घुड़सवारी की, तो ये साफ़ था कि इसे मैं सबसे ज़्यादा मिस कर रहा हूं।‘’
उनका जुनून इतना मजबूत था कि वह जब भी भारत में होते तो बिना किसी प्रशिक्षण के राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेते थे और वे उन घोड़ों के साथ दौड़ में जाते थे, जो उन्होंने पहले से प्रशिक्षित किया था, जिसका मतलब था कि उन्होंने उनके साथ एक अच्छी साझेदारी निभाई।
फौआद मिर्ज़ा की दुआएं तब रंग लाईं, जब उन्हें प्रायोजक मिलने लगे, जिसने अंततः उन्हें 2014 एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने में मदद की।
ओलंपिक का सपना
भारत का ये घुड़सवार जर्मनी में अभ्यास कर रहा है, जहां वह ख़ुद को बड़े सपने के लिए तैयार कर रहे हैं।
“जब आप दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ एथलिटों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तो यह कठिन होने वाला है। यह मेरा पहला ओलंपिक होगा, जबकि एशियाई खेल ख़ुद में बड़ा था, लेकिन ये और भी बड़ा है। लेकिन मैं कभी भी एक बड़ी चुनौती के दबाव में झुकने के लिए नहीं बना हूं, मेरी प्रतिस्पर्धी प्रकृति इसकी इजाज़त नहीं देती है। दूसरे लोग सोच सकते हैं कि मेरे पास कोई मौका नहीं है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि मैं कर सकता हूं।‘’
"मैं इतना कह सकता हूं कि अगर मेरा दिन रहा तो मैं सर्वश्रेष्ठ रहूंगा, और मैं इसको सच करने की पूरी कोशिश करूंगा।‘’