भारत के प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। 1999 में ‘अर्जुन पुरुस्कार’ जीतने वाले बाइचुंग भूटिया अपने प्रशंसकों के बीच अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल क्षेत्र में भारतीय फ़ुटबॉल टीम के ‘टार्च बियरर’ अर्थात मार्गदर्शक के नाम से जाने जाते है। वह भारतीय फ़ुटबॉल के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, उनका खेलने का अलग अंदाज है, उनमें उत्तम दर्जे की स्ट्राइक करने की क्षमता है। वह वास्तव में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। वह भारत के पहले फ़ुटबॉल खिलाड़ी है, जिन्हें इंग्लिश क्लब के लिए खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था। बाइचुंग भूटिया ने सर्वप्रथम 11 वर्ष की आयु में ताशी नांगियाल अकादमी, गंगटोक में भाग लेने के लिए साई स्कालरशिप जीती। उनकी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा ताशी नांगियाल से हुई। उन्होंने सिक्किम में अनेक स्कूल व क्लब प्रतियोगिताओं में बचपन से ही हिस्सा लिया। 1991 में सुब्रोतो कप में किया गया उनका अच्छा प्रदर्शन उन्हें प्रकाश में लाया और उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। इस खेल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया। 1990 और 2000 के दशक में भूटिया भारतीय फुटबॉल को अकेले दम पर आगे बढ़ाया , खास तौर पर 2003 में विजयन की रिटायरमेंट के के बाद, इससे पहले भूटिया और विजयन की जोड़ी को लोग लोहा मानते थे। विजयन भूटिया को गॉड गिफ्टिड फुटबॉलर मानते थे । 1995 में भूटिया ने 19 साल की उम्र में ईस्ट बंगाल के साथ अपने प्रोफेशनल कैरियर की शुरूआत की । उसके बाद से वो भारत के लिए 100 से अधिक मैच खेले हालांकि फीफा के अनुसार आधिकारिक तौर पर 84 की गिनती है जिसमें उन्होंने लगभग 40 गोल दागे । 2004 में बाइचुंग ने एक समाचार को साक्षात्कार दिया। उनसे पूछा कि "जब आपको भारतीय बैकहम कहा जाता है तो आपको कैसा लगता है" तो उन्होंने "कहा यदि मुझे कोई भारत का बेकहम बुलाता है तो निश्चय ही मुझे बहुत अच्छा लगता है।" बाइचुंग से उनके टैम्पर के बारे में पूछा गया कि क्या वह जल्दी ही क्रोधित हो जाते हैं और वह आखिरी बार कब गुस्सा हुए थे तो वह बोले- "मैं बहुत ही शान्त इंसान हूं, इसलिए मुझे गुस्सा बहुत कम आता है। मुझे याद नहीं कि कब मैं गुस्सा हुआ था।" बाइचुंग को फुटबॉल प्रशंसको के बीच ‘सैक्स सिंबल’ कहा जाता है। इस बारे में प्रतिक्रिया जताते हुए उन्होंने कहा था- "किसी के ऐसा कहने पर मुझे कुछ बुरा नहीं लगता।" सन् 1999 में बाईचुंग को पहली बार विदेशी धरती पर ब्यूरी क्लब में फसी (FC) की तरफ से खेलने का मौका मिला और जिसके साथ वो पहले ऐसे भारतीय खिलाड़ी बने जिसने यूरोपियन क्लब के साथ कॉन्ट्रेक्ट किया और मोहम्मद सलीम के बाद दूसरे ऐसे भारतीय खिलाड़ी बने जो यूरोप में प्रोफेनल तौर पर खेले , कल्ब के दिवालिया होने से पहले वे ब्यूरी के लिए 30 मैच खेले।बीच में कुछ समय भूटिया मलेशिया में पेराक FA और सेलांगौर MK के लिए भी खेले । लेखक: अश्विन मुरलीधरन अनुवादक: मोहन कुमार