20 वीं शताब्दी के महानतम संगीतकारों में से एक दिमित्री शोस्तकोविच ने एक बार कहा था कि फुटबॉल जनता की बैले (नाच, गाना, डांस) है। फुटबॉल, घास के मैदान पर उछलती-कूंदती वह गेंद है, जो लोगों के मन और शरीर को ताजगी और उमंग भरी प्रतिक्रिया से भर देती है, जो डॉक्टर की दवाओं से भी उत्पन्न नहीं हो पाती। निराशाओं में, बाधाओं में, वफादारी में, गुंडो के खिलाफ जीत में, यहां तक की उत्साही कहानियों में तक फुटबॉल ने खुद की एक पागल दुनिया बना रखी है। कुछ लोग सोचते हैं कि फुटबॉल जीवन और मृत्यु का मामला है, लेकिन यह उससे भी ज्यादा गंभीर है। फुटबॉल सिर्फ एक खूबसूरत खेल है, जिसमें आत्मा से जुड़ी हुई भावनाओं को एक साथ लाने की सहज शाक्ति है। यहां हम उन पांच उदाहरणों पर बात करते हैं, जब फुटबॉल ने साबित किया कि उसमें दुनिया बदलने की शक्ति है! #5 शांति का एक छोटा सिपाही मैक्सिको एक ऐसा देश है जो, अपने यहां चलने वाले ड्रगस् के धंदे के कारण विश्व भर में बदनाम है। यहां ड्रग गिरोहों की हिंसा के चलते करीब 15000 लोग हर साल मारे जाते हैं, लेकिन जब भी यहां फुटबॉल और विशेषकर जेवियर चिचारिटो हर्नांडेज पिच पर कदम रखते हैं, तो मैक्सिको में जान आ जाती है औऱ वह एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाता है। 2012 में मैनचेस्टर यूनाइटेड के सर एलेक्स फर्ग्युसन के अलावा सभी चिचारिटो के सामने छोटे लग रहे थे। जेवियर को मैक्सिकन लोग प्यार से चिचारिटो बुलाते हैं। 2012 में चिचारिटो ने अपनी मात़भूमि के लिए दमदार और शानदार प्रदर्शन कर लाल शैतानों को बहुत खुशी औऱ गौरव का पल दिया था। मैक्सिको सिटी के शीर्ष पुलिस अधिकारी जॉर्ज कार्लोस मार्टिनेज ने कहा था कि जब चिचारिटो खेलते हैं तो कार जैकिंग, नकल और डकैती जैसे अपराध कम हो जाते हैं। उन्होनें कहा कि अपराधी भी अपने नायक को खेलता देखने के लिए समय निकालना चाहते हैं औऱ वह ऐसा करते भी होंगे। वर्तमान में हर्नाडेज बेयर लेवरकुसेन की बहुमूल्य संपत्ति हैं यहां वह अपने डेब्यू सीजन में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। लेकिन अब वो स्पेनिश दिग्गजों रीयल मैड्रिड के लिए खेलेंगे। #4 जर्मन दीवार को तोड़ा यह कहा गया कि दूसरे युद्ध के कारण जर्मनी एक असंवेदनशील नीति बनाने में लगा है। लेकिन जर्मनी के हथियारों को आराम दे दिया गया जिससे विश्व शांति के साथ रह सके और जर्मनी को तीन भागों में तोड़ दिया गया यह थे- पश्चिम जर्मनी, पूर्वी जर्मनी औऱ सारलैंड, पर अंत में सारलैंड पश्चिम जर्मनी का हिस्सा बन गया। पश्चिम जर्मनी अपने शानदार खेल प्रदर्शन से तीन फुटबॉल विश्व कप जीतने में कामयाब रही लेकिन पूर्वी जर्मनी केवल एक के लिए क्वालिफाई कर पाई। औऱ मैच में 1-0 से भी पश्चिम जर्मनी को नहीं हरा पाई। देशों को आमतौर पर संसकृति की बांधाओं के नाम पर विभाजित किया जाता है लेकिन इन दोनों देशों के बीच एक दीवार बना दी गई जिससे यह एक दूसरे को देख भी नहीं सकते थे। अंत में 1989 में जर्मनी की दीवार को गिरा दी गई लेकिन 1990 तक दोनों को मिलाना संभव नहीं हो सका। पूर्वी जर्मनी 1990 के विश्व कप के लिए क्वालिफाई ही नहीं कर सका लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि फुटबॉल का जादू एक नया इतिहास लिखने के लिए चल पड़ा और इस खेल के प्रति लोगों के प्यार और भावना दोनों देशों के नागरिकों को एक साथ ला दिया और यह सभी मिलकर पश्चिम जर्मनी की प्रशंसा करने लगे उसके पक्ष में खड़े हो गए जो इस बार का विश्व कप जीतने जा रही थी। इसके बाद 1992 के यूरो कप क्वालीफाइंग राउंड से पहले पूर्वी और पश्चिम जर्मनी से बात कर उन्हें तैयार किया गया और अंत में दोनों देशों ने एक राष्ट्र बन कर अन्य टीमों का सामना किया। एक संयुक्त जर्मनी एक अजेय राष्ट्र बनकर उभरेगा, यह भविष्यवाणी एक फ्रेंच बेकनबॉयर ने बहुत पहले की थी। और अंत में ऐंसा ही हुआ क्योंकि पूर्वी जर्मनी के कई खिलाड़ी एकीक़त जर्मनी की राष्ट्रीय टीम में मुख्य आधार बन गए। एकीकृत जर्मनी की टीम ने अपने पहले मैच में स्विट्रजरलैंड को 4-0 से हराकर अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए जश्न मनाया। गौरतलब है कि 1994 के विश्व कप में पश्चिम जर्मनी से ज्यादा पूर्वी जर्मनी के खिलाड़ी थे। 1996 में जर्मनी ने यूरो कप जीता था औऱ अंत में 2014 में एकीक़त जर्मनी ने अपना पहला और अभी तक का पहला विश्व कप जीता । इसलिए कहा भी जाता है कि यदि आप जल्दी जाना चाहते हैं तो अकेले जाइए और यदि आप दूर तक जाना चाहते है तो साथ में चलिए। #3 मानवता का पर्याय मकाना फुटबॉल एसोशिएशन रंगभेद शासन के दौरान कैदियों ने बिना परीक्षण रॉबेन द्वीप की जेल में अपने दिन बिताए थे। उस समय उन्हें चूना खदानों में काम करने के लिए मजबूर किया गया और उनपर क्रूर शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार किया गया। लेकिन फिर भी काले कैदियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी और वे अपने अच्छे दिनों के लिए इंतजार करते रहे। लेकिन कहते है ना कि भगवान रहस्यमय तरीकों से काम करता है, भगवान ने उनकी कोई मदद तो नही की लेकिन एक किताब उनके पास जरूर भेजी। कैदी खाली समय में पुस्तक पढ़ा करते थे गलती से उनके हाथ फीफा नियम पुस्तक लग गई जिसे उन्होंने पढ़ा। जेल की नाउम्मीदी भरी जिंदगी में उत्साह और उमंग जगाने के लिए उन्होंने हफ्ते में एक बार फुटबॉल खेलने की इजाजत मांगी लेकिन अधिकारी इस पर हंसे और मना कर दिया। ऐंसी कोशिशें कैदियों ने 19 बार की फिर भी बात ना मानी गई लेकिन उन्होंने एक और कोशिश की फिर बात मान ली गई। इसके साथ ही मकाना फुटबॉल लीग एक वास्तविकता बन गई। कैदियों ने जैसा पढ़ा था उस के अनुसार मैदान बनाया, गोल के लिए जाल का उपयोग किया। जो लोग राजनीतिक और गुट की वफादारी के कारण विभाजित थे उन सभी को एकजुट किया। फुटबॉल ने मानवीय पक्ष के साथ साथ उन लोगों के साथ सहानुभूति प्रदान करने की कोशिश की जो दुर्भाग्यपूर्ण संघर्ष में फंस गए थे। MFA ने कैदियों द्वारा खेली गई फुटबॉल के मैच विवरण तथा अनुशासनात्मक रिकॉर्ड को दस्तावेज के रुप मे सहेजा है। फीफा के नियमों का पालन करना मुश्किल होता है, लेकिन खिलाड़ियों और प्रबंधको ने खुद को व्यवस्थित रुप से पेश किया। इस एसोसिएशन के रेफरी में जैकब जुमा भी थे जो अब दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। आयोजकों में एक थे डिकगांग मौसेनेके, जो अब न्यायाधीश बनने जा रहे हैं। एक कैदी स्टीव टेंगना जो नेल्सन मंडेला के कार्यकाल में खेल मंत्री रहे। इन कैदियों को आखिर में फुटबॉल ने वहा पहुचाया जहां इन्होंने उम्मीद नहीं की होगी। राजनीतिक कैदी और संघ के संस्थापक सदस्यों मे से एक एंथनी सुजे ने कहा कि यह सोचने में आश्चर्यजनक लगतै है कि, एक खेल जिसे खेलने के लिए दुनियाभर के लोग स्वीकृती लेते हैं और उसी खेल ने कैदियों के समूह को विद्वान बना दिया और हमें सम्मान के साथ जीने का मौका दिया। रोबेन द्वीप में एक कैदी नेल्सन मंडेला भी थे लेकिन उन्हें लीग में खेलने की इजाजत नहीं थी। लेकिन 2007 में वह रोबेन आइलैंड वापस आए और मकाना फुटबॉल एसोसिएशन को बनाया। इस क्लब को मानवता को दिए अपने योगदान के कारण मानद फीफा सदस्यता से सम्मानित किया गया था। #2 ईराक फुटबॉल टीम और उम्मीदें यह 2007 में AFC एशियाई कप फाइनल का नजारा था। ऐंसा लग रहा था कि यह कोई बड़ा अवसर नहीं हैं क्योंकि 60000 लोग ही जकार्ता के इस स्टेडियम में मौजूद थे। जबकि यहां इससे दुगुने लोग आ सकते थे। पर यहां असली कहानी तो ईराक की थी जो अमेरिकी विद्रोह के कारण घुटने पर खड़ा था। लेकिन उसने सभी बाधाओं को पार करते हुए अपने देशवासियों की उम्मीदों और सपनों को बनाए रखा। इराकी फुटबॉल टीम ने आंतरिक संघर्ष, विदेशी आक्रमण और परतंत्रता से जी रहे, अपने लोगों को एक मौका दिया जिससे वह भाईचारे के साथ खुशी मना सकें, उत्सव मना सकें। इराक-सऊदी अरब का फाइनल में पहुचना एक नाटकीय घटना के समान था। सेमीफाइनल में दक्षिण कोरिया पर इराक की जीत के बाद, आत्मघाती हमलावरों के एक समूह ने खुद को उड़ा लिया था। जिससे 50 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह सभ देखकर इराक टीम वापस आने पर विचार कर रहीं थी। लेकिन इराक टीम के कप्तान यूनिस महमूद के संकल्प के कारण वह वही रहे। उन्होंने घटना के बाद देखा कि एक महिला अपने 12 वर्षीय बच्चे के मृत शरीर पर रो रही है उनके अनुसार यह लड़का इराकी राष्ट्रीय टीम के लिए बलिदान था। यूनिस ने सोचा कि यदि अल्लाह सभी को एक रस्सी के साथ कुएं में फेक रहे हैं तो वह अपनी आंखे बंद करके नहीं जा सकते। उन्होंने फैसला किया की टीम मातृभूमि के लिए कप जीतेगी और यहीं रहेगी। यूनिस ने शिया, सुन्नी और कुर्दों की समुदाय की टीम का नेतृत्व किया, जो सद्दाम हुसैन के शासन काल में एक-दूसरे के खून के प्यासे रहते थे। यूनिस ने खेल के 75 वें मिनट में, फाइनल के एकमात्र गोल किया और उनकी टीम विजयी हो गई। इस दिन सभी लोग सामाजिक-राजनीतिक मतभेद भूलाकर, घरों से बाहर निकलकर आपस में अपनी टीम का जश्न मनाने लगे थे। इस जीत के बाद इराक में जातीय हिंसा की घटनाओं में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी आई। कोई भी बढ़ा बदलाव हम आपस में लड़कर नहीं, एक-दूसरे के साथ मिलकर ही ला सकते हैं। #1 डिडिएर ड्रोग्बा ने सिविल वॉर रोकी वर्ष 2005 की बात है आइवरी कोस्ट राष्ट्र, ग्रहयुद्ध के कारण बाहर हो रहा था। व्हाईट एलिफेंट्स 2006 विश्व कप के लिए क्वालिफाई कर चुके थे जबकि डिडिएर ड्रोग्बा को यह दिखाना था कि फुटबॉल में वो भी किसी से कम नहीं हैं। वह पहले से ही एक राष्ट्रूीय नायक थे जिन्होंने दो बार प्रीमियर लीग जीता और यूरोप में शानदार प्रदर्शन किया। विश्व कप के अंतिम राउंड में अपनी योग्यता के बाद भी, ड्रोग्बा ने फैसला किया कि वह खेलने नहीं जाएंगे और देश की स्थिति सुधारने, ग्रह युद्ध रोकने में मदद करेंगे। उन्होंने लाइव टेलिविजन पर अपने घुटनों के बल बैठकर अपील की कि इतना धन होने के बाद भी एक अफ्रीकी देश को युद्ध नहीं करना चाहिए। कृपया अपने हथियार डाल दें और चुनाव कराएं सब बेहतर हो जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि हम मजा करना चाहते हैं इसके लिए हमें अपनी बंदूकों को बंद करना होगा। प्रतिद्वंद्वी समूह ड्रोग्बा के अनुरोध को मानने के लिए बाध्य हो गए और उन्होंने अपने हथियार रख दिए। एक साल के भीतर राष्ट्रपति ने घोषणा की कि युद्ध समाप्त हो गया है। ड्रोग्बा के अनुरोध पर दो साल से भी कम समय में आइवरी कोस्ट अपने विद्रोही की राजधानी मेडागास्कर में दुबारा मिल गई। चेल्सी के पूर्व स्ट्राइकर ने कहा कि राष्ट्रीय गान के समय दोनों नेताओं की तरफ देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। ड्रोग्बा खेल के 90 मिनट में फिर एक गोल करेंगे जिससे वह यह दिखा सके की एक खेल ने दुनिया को कैसे बदल सकता है। एक बार फिर इस खूबसूरत गेम की शक्ति और महान लोगों इस दुनियां में यह साबित कर दिया था कि यदि सोच लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। डिडिएर ड्रोग्बा ने एक गृहयुद्ध को बंद करा दिया था।