अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने कहा कि 1956 मेलबर्न ओलंपिक्स में चौथे स्थान पर रहने वाली राष्ट्रीय टीम के पूर्व फुटबॉलर निखिल नंदी का मंगलवार को कोलकाता के अपने घर में देहांत हो गया। निखिल नंदी ने 88 की उम्र में अंतिम सांस ली। 1950 के समय में राष्ट्रीय टीम का प्रमुख हिस्सा रहे निखिल नंदी ने इस साल की शुरूआत में कोविड-19 से रिकवरी की थी।
बाद में उनके गुर्दे की समस्या बढ़ी और इसका एक महीने से ज्यादा समय तक इलाज कराया। निखिल नंदी अपनी पत्नी, बेटे और दो बेटियों के साथ थे। निखिल नंदी 1950 के समय में अपने चरम पर थे जब उन्होंने भारतीय डिफेंस को मजबूत बनाया, जिसने 1956 मेलबर्न ओलंपिक्स में प्रतिस्पर्धा की थी। प्रतियोगिता में भारत ने मेजबान ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से मात दी थी। इसके बाद सेमीफाइनल में उसे युगोस्लाविया से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। ब्रॉन्ज मेडल मैच में भारतीय फुटबॉल टीम को बुल्गारिया के हाथों 0-3 से शिकस्त झेलनी पड़ी थी।
निखिल नंदी थे भारतीय टीम की जान
जहां नेविल डी सूजा ने गोल करने की क्षमता के कारण टीम का नेतृत्व किया, वहीं भारत को तुलसीदास बालाराम, पीके बैनर्जी, निखिल नंदी और अब्दुल टी रहमान से बराबरी का समर्थन मिलता था। एआईएफएफ अध्यक्ष प्रफुल पटेल ने अपने बयान में कहा, 'निखिल नंदी के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। भारतीय फुटबॉल में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। मैं दुख जाहिर करता हूं।'
निखिल नंदी ने भारतीय टीम को 1958 एशियाई गेम्स के सेमीफाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी साल निखिल नंदी ने ईस्टर्न रेलवेज को कलकत्ता फुटबॉल लीग (सीएफएल) खिताब दिलाया। निखिल नंदी उस बंगाल टीम के सदस्य थे, जिसने 1955 में संतोष ट्रॉफी खिताब जीता था। संन्यास के बाद निखिल नंदी ने कोच के रूप में योगदान जारी रखा और जे किट्टु के साथ संयुक्त रूप से भारतीय फुटबॉल टीम की कमान अपने हाथों में ली।
एआईएफएफ महासचिव कुशल दास ने कहा, 'निखिल नंदी गिफ्टेड खिलाड़ी थे और अपनी उपलब्धियों के बल पर हमेशा जिंदा रहेंगे। वह कई फुटबॉलर्स के लिए प्रेरणा रहे हैं। हम उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं।' निखिल नंदी का ताल्लुक फुटबॉलर्स के खानदान से रहा है। उनके दो बड़े भाई संतोष नंदी और अनिल नंदी ने भी 1948 लंदन ओलंपिक्स में राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व किया।