क्यों फुटबॉल क्लब घर में और बाहर अलग-अलग रंगों की जर्सी पहनते हैं?

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मुझे यकीन है कि बहुत लोगों के मन में यह सवाल होगा कि क्यों टीमें अपने घर और बाहर अलग-अलग रंग की जर्सी पहनकर खेलती हैं। हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक टीम के पास तीन किटें होती हैं, पहली घर के लिए, दूसरी बाहर खेलने के लिए और तीसरी वैकल्पिक किट। सवाल उठता है कि कौन सी टीम किस मैच में किस रंग की जर्सी पहनती है। यह आमतौर पर होम टीम निर्धारित करती है कि वह किस रंग की जर्सी पहनना पसंद करती है, लेकिन दूसरी टीम भी अपनी पसंद के लिए स्वतंत्र होती है। मैनचेस्टर यूनाइटेड और लिवरपूर का उदाहरण लेते हैं दोनों ही टीमें अपने घर में लाल जर्सी पहनती हैं, इससे खिलाड़ियों, रेफरी और दर्शकों को बहुत समस्या होती है। जैसा कि हमने पिक्चर में देखा, दोनों टीमों की जर्सी दिखने में बहुत समान हैं। अगर दोनों टीमें समान जर्सी के साथ खेलती हैं तो दर्शकों को समझनें में परेशानी होती है कि मैच में आखिर हो क्या रहा है। ज्यादातर मामलों में होम टीम, होम किट पहनती हैं, लेकिन विशेष अवसरों पर उन्हें किसी और रंग की जर्सी पहने के लिए मजबूर किया जाता है। इसलिए टीमों को तीन तरह की किटों की जरूरत होती है। ऐंसा ही एक वक्या 1993-94 में हुआ जब शेफील्ड को न्यूकैसल यूनाइटेड के साथ खेलना था जिसमें शेफील्ड की घर और बाहर की दोनों किट न्यूकैसल के काले और सफेद पट्टियों के समान थी। हममें से कई लोगों को लगता है कि होम टीम को अपनी होम जर्सी पहननी चाहिए लेकिन कई बार यह संभव नहीं हो पाता। प्रीमियर लीग के एक प्रवक्ता का कहना है कि यह टीमों पर निर्भर है कि वह किस तरह की जर्सी पहनें लेकिन यदि टीमों के किटों में टकराव है तो बाहर की टीम की जर्सी बदल दी जाती है। लेकिन यह कोई नियम नहीं है कि घर की टीम को हमेशा होम किट पहननी चाहिए। 1993-94 के मामले में वापस जाते हैं इसस समय न्यूकैसल और शेफील्ड दोनों के घर और बाहर के दोनों किट समान थे। इसलिए टीमों को 3 किट रखने की सलाह दी जाती है। यह लगभग असंभव सा होता है कि दोनों टीमों की तीनों किट समान हों। ऐंसा अभी तक नहीं हुआ है।

2013 में नेपोलि ने चैंपियन लीग में अरसेनल के खिलाफ घर में खेलते हुए भी वैकल्पिक किट पहनीं थी क्योंकि उनका मानना था कि वैकल्पिक किट भाग्यशाली हो सकती है। आने वाले दिनों में UEFA मैच के दिनों में कुछ जर्सी पहनने के लिए क्लबों से पूछताछ कर सकता है। उदाहरण के लिए, 2015-16 में एथलेटिको मैड्रिड और बार्सिलोना के क्वाटर फाइनल में UEFA ने दोनों क्लबों से बाहर की किट पहनने को कहा था। ऐंसा रेफरी और दर्शकों के लिए दोनों टीमों में अंतर के लिए किया गया था। जर्सी का मुख्य कारण खिलाड़ियों और दर्शकों को भ्रम से बचाना हैं। घर की किट का रंग क्लब की विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। कभी कभी दर्शकों के कारण पारंपरिक रंगो का पालन भी किया जाता है। समय के साथ और नए प्रायोजकों के साथ किट के डिजाइन में बदलाव होता है लेकिन रंगो के संयोजन एक समान होते हैं। बाहर या वैकल्पिक किट का मुख्य उद्देश्य खिलाड़ियों को किसी भी भ्रम के बिना मैच खेलने की इजाजत देना हैं क्योंकि कई टीमों के घर के किट समान हैं। वे समय के साथ या टूर्नामेंट के साथ बदलते रहते हैं। पहले के कुछ मामले...

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कुछ समय पहले चेल्सी एक मैच खेल रहे थे जिसमें दोनों टीमों की किट समान थी। इसपर अधिकारियों ने चेल्सी खिलाड़ियों से किट बदलने और दूसरी किट पहनने का बोला। लेकिन चेल्सी के पास कोई और किट नहीं थी और अंत में उन्हें मैच पूरा करने के लिए विपरीत टीम की किट का इस्तेमाल करना पड़ा। ऐंसे अतीत के कई मामले हैं जिसमें अधिकारियों को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इंग्लैंड में 1890 में द फुटबॉल लीग का एक नियम था कि दो टीमें समान रंग की जर्सी में रजिस्टर्ड नहीं होगी। क्योंकि जिससे खेल के दौरान भ्रम की स्थिति से बचा जा सके। इस नियम को बाद में बदल दिया गया और जिसके पास एक और दूसरे रंग की जर्सी है वह पंजीकृत हो सकती थी। भ्रम की स्थिति ना बने इसके लिए स्कॉटिश फुटबॉल एसोसिएशन ने 1927 में नियम निकाला कि घर की टीम को सफेद शॉर्ट्स पहनना चाहिए औऱ बाहर की टीम को काला, लेकिन बाद में इस नियम को रद्द कर दिया गया। 1889-90 तक एफए कप प्रतियोगिता के नियम में कहा गया था कि यदि दो प्रतिस्पर्धी क्लबों की जर्सी के रंग समान होते हैं तो दोनों क्लबों को बदल दिया जायगा जब तक दोनों क्लब पारस्परिक रूप से सहमत नहीं हो जाते। इसके कारण कई बार क्लबों को तीसरे स्थान पर जाना पड़ता था । इस नियम के तहत खेला जाने वाला अंतिम एफए कप फाइनल 1982 का था। जबकि अंतिम यूरोपीय प्रतियोगिता 1968 का फाइनल था। कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होने के कारण और समान रंग किट होने के कारण कई मामलों में क्लबों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इस कारण प्रत्येक क्लब को तीन किटों का विकल्प दिया गया है। लेखक: हर्ष बियानी अनुवादक: आशुतोष शर्मा

Edited by Staff Editor