पिछले एक दशक में भारतीय हॉकी टीम के सबसे उम्दा खिलाड़ी रहे सरदार सिंह अंतरराष्ट्रीय हॉकी से सन्यास की घोषणा कर चुके है। सरदार सिंह भारतीय हॉकी टीम के लिए वैसे तो 300 से ज्यादा मैच खेल चुके है लेकिन उनके सफर की शुरुआत भी उतनी ही रोचक हुई थी जितनी कि किसी भी असाधारण खिलाड़ी की होती हैं।
सरदार सिंह टीम में चुने जाने के बाद अपने पहले दौरे की तैयारी में लगे हुए थे क्योंकि उन्हें दो दिन बाद भारतीय टीम के साथ पोलैंड रवाना होना था, उस खिलाड़ी को टीम की जर्सी और किट मिल जाती है। सरदार सिंह जैसे ही बैंगलौर से दिल्ली होते हुए पोलैंड जाने के लिए तैयार होते है ठीक उसी वक़्त सरदार सिंह को बताया जाता है कि वो टीम में शामिल नहीं है बल्कि उसके स्थान पर किसी दूसरे खिलाड़ी का नाम है।
सरदार वही खिलाड़ी है जिन्होंने भारत को लंदन ओलंपिक खेलों में पहुंचानें में अहम भूमिका निभाई औऱ मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे। पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त से टीम इंडिया के साथ जुड़े हॉकी खिलाड़ी सरदार सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं। कई साल तक भारतीय टीम की कमान संभालने वाले सरदार सिंह भारतीय हॉकी के आइकॉन बन चुके है।
भारत ने 2006 में सुलतान अजलान शाह हॉकी में कांस्य पदक जीता उस वक़्त सरदार सिंह भारतीय टीम का हिस्सा थे। इसके अलावा 2007 में एशिया कप विजेता भारतीय टीम का हिस्सा रहे, जबकि 2014 के इंचियोन एशियन गेम्स में सरदार के नेतृत्व में टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। साल 2006 में पाकिस्तान खिलाफ अपने इंटरनेशन करियर का आगाज करने वाले सरदार सिंह को साल 2012 में एफआइएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के ख़िताब से भी नवाज़ा जा चुका है।
देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्ड हासिल कर चुके सरदार सिंह का करियर अब ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुका है जहाँ उन्हें अपने खेल को विराम देने का कड़ा फैसला करना ही था। सरदार के बुरे दौर की शुरुआत वैसे तो उनकी कप्तानी छिन जाने के बाद से ही शुरू हो गयी थी। मगर उन्हें सबसे बड़ा झटका तब लगा जब एक खिलाड़ी के तौर पर राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चुनी गई टीम से बाहर कर दिया गया।
हॉकी वर्ल्ड लीग फाइनल और गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान टीम से ड्रॉप किए गए मिडफील्डर को टीम इंडिया के नए नवेले कोच हरेंद्र सिंह ने फिर से टीम में मौका दिया था। चैंपियनस ट्रॉफी में मिले मौके सरदार सिंह कोई खास करिश्मा नही दिखा पाए। हालांकि इसके बाद जकार्ता में एशियन गेम्स में भी सरदार सिंह बेअसर ही साबित हुए।
सेंटर हाफ में खेलने वाले सरदार सिंह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वो किसी भी खेमें में बड़ी तेज़ी से गेंद को आगे लेकर बढ़ते हैं और उन्हें रोक पाना विरोधियों के लिए परेशनी का सबब बन जाता है। सरदार सिंह के इस तरह के तेजतर्रार खेल को देखे लंबा वक्त गुज़र गया, उनके पुराने खेल की कुशलता कई गुम सी हो गई है। कई खेल विश्लेषको का मानना है बीते समय में सरदार सिंह पर लगे यौन आरोप विवाद का असर उनके खेल पर भी पड़ा है जिसके चलते उनके खेल में पहले की तरह फुर्ती और चपलता का वो मेल देखने को नही मिल रहा जो कि एक खिलाडी के लिए बेहद ही जरूरी है।
अगर सरदार सिंह की पिछली कुछ परफॉर्मेंस पर गौर किया जाए तो ये बात भी साफ जाहिर हो जाती है कि उनकी शारिरिक दक्षता पहले की तरह नज़र नही आई, इसका सीधा मतलब यह है कि उनकी फिटनेस अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैचों की नही रही जिसके चलते वो खुद की स्कील्स पर सटीक नियंत्रण नही रख पाते, उम्र के इस पड़ाव पर उन पर थकान साफ जाहिर होती है। टीम में पर्याप्त मौके मिलने के बावजूद सरदार सिंह टीम के लिए अपनी उपयोगिता साबित नही कर पाए इसलिए उनके संन्यास का फैसला विश्व कप से पहले किसी नवोदित खिलाड़ी के लिए नए रास्ते खोलेगा।
इसमें कोई शक नही होना चाहिये क्योंकि खेल कोई भी हो अतीत के परफॉर्मेंस पर आपका भविष्य निर्धारित नही करता। इस दफा सरदार सिंह को किसी की हमदर्दी की बजाय हौसलाफजाई की जरूरत है। सरदार सिंह का बेहतरीन कैरियर उन खिलाड़ियों के लिए भी प्रेरणा का काम करेगा जो खिलाड़ी अपने जीवन में उतार चढ़ाव वाले दौर से गुजर रहे है। सरदार सिंह भले ही एशियाई खेलों में बढ़िया खेल नही दिखा पाए, फिर भी वो एक शानदार विदाई के हकदार है। सरदार सिंह की उपलब्धियों की फेहरिस्त अभी भी इतनी लंबी है कि उनकी भरपाई करने के लिए हम सबको लंबा इंतजार करना होगा।