दुनिया के नम्बर तीन खिलाड़ी रोजर फेडरर ने इस सबार फ्रेंच ओपन से अपना नाम वापस ले लिया है। इसका कारण उन्होंने पीठ दर्द को बताया है और फैन्स से माफ़ी भी मांगी है। इससे पहले वह इसी चोट की वजह से मुटुआ मेड्रिड ओपन के से भी हट गये थे और ख़िताब दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी नोवाक जोकोविच ने जीत लिया था। फेडरर ने जब से इस साल पीठ की सर्जरी करवाई है, तब से वह पीठ दर्द से परेशान रहे हैं। 34 बरस के इस खिलाड़ी ने अबतक 17 ग्रैंड स्लैम जीता है। लेकिन चोट और खराब फॉर्म की वजह से वह इधर संघर्ष करते रहे हैं। खासकर इस साल वह ज्यादा परेशान रहे हैं। स्विटज़रलैंड के इस खिलाड़ी ने अपने पसंदीदा ग्रैंडस्लैम को ध्यान में रखते हुए उन्होंने खुद को इस ग्रैंडस्लैम से अलग करके आराम करना उचित समझा है। इससे पहले इस दिग्गज टेनिस खिलाड़ी ने 1999 में कोई ग्रैंडस्लैम छोड़ा था। जहाँ उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन और यूएस ओपन से भी हटने का निर्णय लिया था। नोकिया 3210 दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला फोन बना नोकिया उसके बाद बंद हो गया था, साल 2015 में इस फिनलैंड की कंपनी को माइक्रोसॉफ्ट ने खरीद लिया था। लेकिन उस समय नोकिया मोबाइल का पर्याय हुआ करता था। साथ ही ये मॉडल भी काफी लोकप्रिय हुआ था। ये फोन काफी टिकाऊ था और इसी वजह से शायद इसने दो दशक तक मोबाइल फोन के बाजार में नम्बर रहा। तब मैक्स वर्स्टापेन एक साल के थे आज वह भले ही सबसे कम उम्र के फार्मूला वन के विजेता रहे हों, लेकिन 1999 में मैक्स के पिता जोस हौंडा के लिए फार्मूला वन कार माइकल शुमाकर, रबेन बरिचेलो, ओलिवर पेनिस, डेमोन हिल और जैक्स विलेंसयूव के साथ चलाते थे। हाल ही में युवा वर्स्टापेन ने बीते सप्ताह स्पेनिश ग्रैंड प्रिक्स में जीत हासिल की है और वह अभी महज 18 साल के हैं। ऐसे में वह पहले और सबसे कम उम्र में फार्मूला वन के विजेता बन गये हैं। लेकिन अंतिम बार जब फेडरर ग्रैंड स्लैम नहीं खेले थे, तब वर्स्टापेन नवजात थे। लियोनल मेसी ने तब अपना डेब्यू भी नहीं किया था मेसी को अबतक का बेहतरीन फुटबॉलर माना जाता है। उन्होंने रिकॉर्ड बनाते अपने करियर में अबतक 5 बैलन डी’ऑर जीत चुके हैं और बहुत से रिकार्ड्स के करीब हैं। लेकिन 1999 में मेसी 12 साल के युवा थे। वह दुनिया के बेहतरीन फुटबॉलर बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे। मेसी न्यूवेल ओल्ड बॉयज रोसारियो क्लब के लम्बे समय तक फैन रहे थे। वह इस क्लब के साथ बीते 6 सालों से जुड़े हैं और उनके 500 से ज्यादा गोल हैं। साल 2000 में एफसी बार्सिलोना ने अपने यूथ क्लब बर्का बी के लिए चुना था। जहाँ उन्हें 500 यूएस डॉलर मिला था। मेसी को इसके बाद ग्रोथ हार्मोन डेफिशियेंसी हो गया और वह इलाज के बगैर अपना करियर आगे नहीं बढ़ा सकते थे। और अब जो आप देख चुके हैं वह इतिहास बन चुका है। राफेल नडाल ने तब अपना प्रोफेशनल टेनिस डेब्यू नहीं किया था रोजर फेडरर और राफेल नडाल एक दुसरे के कड़े प्रतिद्वेंदी के रूप में इन दोनों स्विस-स्पेनिश खिलाड़ियों के मुकाबले का आंकड़ा 23-12 का रहा है। यद्यपि इन दोनों के बीच कई नजदीकी मुकाबले भी हुए हैं। किंग ऑफ़ क्ले में इनके बीच ज्यादा जीत हासिल करने का संघर्ष चल रहा है। फेडरर ने 18 साल की उम्र में 1999 में अपना टेनिस डेब्यू किया था। लेकिन उन्हें सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी तीन सीजन बाद मिला। हालाँकि ये दोनों बड़े खिलाड़ी बीते एक साल से “फेडल” मुकाबले में नहीं भिड़े हैं। मैनचेस्टर यूनाइटेड की जीत की हैट्रिक सन 1998 में असफल रही यूनाइटेड ने 1999 में कमाल का प्रदर्शन किया था। उस साल टीम ने तीन ख़िताब जीते थे। क्लब ने एफ़ए कप, प्रीमियर लीग और यूईएफए चैंपियंस लीग का ख़िताब जीता था। यूनाइटेड 1999 में ऐसा कारनामा करने वाली पहला क्लब बन गया था। उन्होंने चैंपियन लीग के फाइनल में 0-1 से पिछड़ने के बाद बेहतरीन वापसी की थी। ओले गुन्नार सोल्स्क्जेर ने बाद में आकर बढ़ाये गये टाइम में गोल करके टीम को जीत दिलाया था। विराट कोहली भी स्कूल में थे भारत के टेस्ट कप्तान और सीमित ओवर के सुपरस्टार विराट कोहली जिन्होंने साल 2016 में कमाल का प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। उन्होंने इस बार आईपीएल में 4 शतक ठोंक डाले हैं। 1999 में विराट की उम्र 11 साल की थी। वह उस वक्त दिल्ली के विशाल भारती पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे। साथ ही उन्होंने हाल ही में वेस्ट दिल्ली के क्रिकेट अकादमी में एडमिशन भी लिया था। लेकिन आज के समय में वह दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों में शुमार हैं। कारगिल युद्ध जारी था- और भारत ने जीता था कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए एतिहासिक रहा था। सन 1999 में चुपके से पाकिस्तानी सेना विवादित कश्मीर क्षेत्र से कारगिल में प्रवेश कर आई थी और उन्हें खदेड़ने के लिए भारत ने जवाबी हमला किया था। ये युद्ध बहुत ही भीषण हुआ था। भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को हराकर कारगिल को अपने कब्जे में किया था। ये युद्ध भारतीय टीवी के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि थी। जहाँ इसे लाइव ब्राडकास्ट किया गया था। सचिन ने अपने करियर की बेहद खास पारी खेली थी दुनिया भर में अपनी बेहतरीन बल्लेबाज़ के लिए मशहूर सचिन तेंदुलकर ने 1999 में एक बेहतरीन पारी खेली थी। हालाँकि 1999 के विश्वकप के आधे सफर के दौरान ही उनके पिता प्रोफेशर रमेश तेंदुलकर की मौत हो गयी थी। सचिन ने इस वजह से ज़िम्बाब्वे के खिलाफ हुए मैच से बाहर बैठे थे। लेकिन जब वह केन्या के खिलाफ मैच में वापस आये तो उन्होंने 101 गेंदों में 140 रन बनाये थे। ये ऐसा पल था जो भारतीय दर्शकों के भावनाओं के काफी करीब था। सचिन ने अपनी इस पारी को अपने पिता को समर्पित किया था। इससे ये पता चलता है कि हर सुपरह्यूमन भी होता एक इन्सान ही है। मोहम्मद अजहरुद्दीन बैन होने के कगार पर पहुंचे हैदराबाद में पैदा हुए मोहम्मद अजहरुद्दीन क्रिकेट इतिहास के पहले ऐसे बल्लेबाज़ थे जिन्होंने टेस्ट में अपने पदार्पण के बाद लगातार तीन शतक बनाये थे। इसके आलावा वह भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तानों में से एक थे। 1999 में उनसे कप्तानी छीनकर सचिन को कप्तान बनाया गया था। जिसके बाद अगले 8 महीने में उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी। साल 1999 के आखिरी में ये बात पूरी तरह से फ़ैल गयी थी कि अजहर मैच फिक्सिंग में बुरी तरह से इन्वोल्व थे। ये मामला मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ा काफी गंभीर विषय बन गया था। हाल ही में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म भी रिलीज़ हुई है। जिसमें उनके मैच फिक्सिंग कांड के बारे में बताया गया है। साथ ही उनके सफल करियर की नुमाइश करता है। सेरेना विलियम्स ने ग्रैंड स्लैम जीता था.......क्योंकि कुछ चीजें नहीं बदलती हैं इस वक्त कि नम्बर एक टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम ने 1985 में डेब्यू किया था। तब उनकी उम्र मात्र 14 साल की थी। अमेरिका की इस टेनिस दिग्गज ने 11 साल बाद इसी साल दो ग्रैंडस्लैम जीते थे। सेरेना ने 2015 में विंबलडन में चैंपियनशिप जीतकर अपना 22वां ग्रैंडस्लैम जीता है। जहाँ उन्होंने अपना जबर्दस्त खेल दिखाया था। जिससे उन्होंने दोबारा से अपनी पहली रैंक हासिल कर ली। सेरेना जबकि WTA में भाग नहीं ले पायीं थीं। फिर भी वह अपना पहला स्थान बरकरार रखने में कामयाब हैं। सेरेना जमेका विलियम फ्रेंच ओपन में खेलने के लिए तैयार हैं। जो इस वक्त स्टेट दे रोलैंड-गर्रोस और इसे वह तीन बार जीत चुकी हैं। अब देखना दिलचस्प होगा की वह एक बार फिर इस ख़िताब को जीतने में कामयाब होती हैं या नहीं। लेखक: अनुराधा सैन्थानम, अनुवादक: मनोज तिवारी