1990 के समय में धर्मवीर मलिक भारतीय टीम के नियमित सदस्य थे, जो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जूनियर स्तर पर प्रतिस्पर्धा करते थे। पूर्व 76 किग्रा उम्र-समूह राष्ट्रीय चैंपियन के लिए सबसे बड़ा इवेंट था 1995 में कैडेट विश्व चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करना, लेकिन वह बिना मेडल जीते वहां से लौटे। पांच साल बाद घुटने की चोट के कारण उन्हें मजबूर होकर संन्यास लेना पड़ा। बुधवार की रात उनकी बेटी अंशू मलिक ने 57 किग्रा श्रेणी में विश्व कप में सिल्वर मेडल जीता। यह देखकर धर्मवीर मलिक अपने आंसू नहीं रोक पाए।
भावुक हो चुके धर्मवीर ने कहा, 'मेरी बेटी ने अंतरराष्ट्रीय मेडल जीतने के मेरे सपने को पूरा किया। मुझे घुटने की चोट के कारण रेसलिंग छोड़नी पड़ी थी और कभी अंतरराष्ट्रीय मेडल नहीं जीता था। हालांकि, मेरे बड़े भाई पवन कुमार ने सैफ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था। अंशू मलिक को विश्व कप में मेडल जीतता देख हमारी सभी उपलब्धियां पार हो गईं और यही उम्मीद सभी माता-पिता को होती है।'
हरियाणा के जिंद के निदानी गांव में शुरूआत में यह सोचा गया कि धर्मवीर का बेटा शुभम पहलवान बनेगा। अंशू तब पढ़ाई में ज्यादा सक्रिय थी और अपनी क्लास की टॉपर भी थी। मगर शुभम के साथ स्कूल के एक ट्रेनिंग सेशल में शामिल होने के बाद अंशू मलिक का खेल में रुझान बढ़ा। चार साल में अंशू मलिक ने नतीजे दिखाना शुरू कर दिए। अंशू मलिक ने 2016 में ताईवान में एशियाई जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप्स सिल्वर मेडल जीता था।
इसी साल वर्ल्ड कैडेट इवेंट में अंशू मलिक ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। मगर 19 साल की अंशू की सफलता का मतलब धर्मवीर को सीआईएसएफ से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। उनके पास पेंशन हासिल करने का कोई विकल्प नहीं था। वह सोनीपत या लखनऊ जाना चाहते थे ताकि अंशू ट्रेनिंग कर सके और उसे अतिरिक्त समर्थन पहुंचा सके। धर्मवीर ने याद किया, 'हम किराए के घर में रहते थे और मैं उसके लिए खाना पकाता था ताकि उसका पूरा ध्यान रेसलिंग पर लगा रहे।'
अंशू मलिक को गोल्ड मेडल ने पूरी तरह बदला
अंशू ने अपने गांव में सीबीएसएम स्पोर्ट्स स्कूल में जगदीश शेओरन की देखरेख में पहलवानी शुरू की, जिन्होंने 20 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पहलवानों को कोचिंग दी है। शुरूआत में तो अंशू का ज्यादा ध्यान उनकी पढ़ाई पर लगा होता था। शेओरन ने कहा, 'अंशू बहुत समय तक पढ़ाई करती थी। हमने उसके लिए छोटे ट्रेनिंग सेशन की नई योजना बनाई। पहलवानी उसके खून में हैं और मैं यह देख पाया क्योंकि उसने बहुत जल्दी चीजें सीखी।'
2017 में एथेंस में वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप्स में अंशू ने गोल्ड मेडल जीता, तब सभी चीजें पूरी तरह बदल गईं। शेओरन ने कहा, 'उस जीत ने अंशू को पहलवान के रूप में पूरी तरह बदल दिया था। वह मानसिक रूप से भी बदल गई थी और फिर उसने ट्रेनिंग में ज्यादा समय देना शुरू किया। वह अब ट्रेनिंग में रोजाना 6 घंटे से ज्यादा बिताती है।'