ओलंपिक में भारत को हॉकी के बाद रेसलिंग में ही सबसे ज़्यादा क़ामयाबी मिली है, ओलंपिक का पहला व्यक्तिगत पदक भी भारत के लिए रेसलिंग में ही केडी जाधव (KD Jadhav) ने दिलाया था। तो रेसलर सुशील कुमार (Sushil Kumar) ने लगातार दो बार पदक जीतते हुए इतिहास ही रच डाला।
और इसी तरह रियो 2016 में पहलवान साक्षी मलिक (Sakshi Malik) ने कांस्य पदक जीतते हुए ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बन गईं थीं।
हालांकि ओलंपिक पोडियम का वह सफ़र 27 वर्षीय साक्षी के लिए आसान नहीं था, उस वक़्त 58 किग्रा भारवर्ग में खेलने वाली साक्षी मलिक लंबे समय तक गीता फ़ोगाट (Geeta Phogat) के बाद दूसरे नंबर पर रहा करतीं थीं।
रियो 2016 में भी ये तय था कि वह गीता फ़ौगाट ही होंगी जो ओलंपिक में महिला रेसलिंग की ध्वजवाहक रहेंगी। लेकिन रियो गेम्स से ठीक पहले कुछ ऐसा हुआ कि उनकी जगह साक्षी को रियो का टिकट मिल गया था।
साक्षी ने रियो में ख़त्म किया पदक का सूखा
भारतीय महिला पहलवान ने 2016 में अपने पहले ओलंपिक के लिए क्वालिफाई तो कर लिया था, लेकिन उनसे किसी ने बहुत ज़्यादा उम्मीदें नहीं बांधीं थीं।
अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra), जीतू राय (Jitu Rai), सानिया मिर्जा (Sania Mirza), विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) और साइना नेहवाल (Saina Nehwal) जैसे बड़े नामों पर देश की निगाहें टिकी हुई थीं, जबकि एक युवा साक्षी मलिक से उम्मीद की जा रही थी कि वह अपने करियर में आगे बढ़ने का अनुभव हासिल करेंगी।
लेकिन निशानेबाजों और टेनिस सितारों के असफल रहने के बाद देश एक बार फिर उस खेल पर उम्मीदों के साथ नज़र बनाए हुए था जिसने पिछले दो संस्करणों में पदक दिलाए हालांकि वेलेरिया कोब्लोवा (Valeria Koblova) के हाथों 2-9 से हार का सामना करने के बाद साक्षी ने सभी को निराश कर दिया था।
लेकिन कोब्लोवा ने इसके बाद फ़ाइनल में जगह बना ली और साक्षी को रेपचेज राउंड के ज़रिए पजक जीतने का एक और मौक़ा मिल गया था। इस बार साक्षी ने निराश नहीं किया और इतिहास रच डाला।
हार के मुंह से छीनी जीत
साक्षी मलिक का कांस्य पदक का मुक़ाबला तब की एशियन चैंपियन किर्गरिस्तानी पहलवान एसुलु टाइनिबेकोवा (Aisuluu Tynybekova) के ख़िलाफ़ था। इस मैच के बारे में ओलंपिक चैनल के साथ बातचीत में साक्षी ने कहा, “सारे देश की नज़र अब मेरे ऊपर टिकी थी और वक़्त तेज़ी से भागा जा रहा था। लेकिन मैंने सोच लिया था कि आख़िरी लम्हों तक हार नहीं मानूंगी, और वही हुआ अंतिम सेकंड्स में मेरा वह दांव काम कर गया और फिर जो हुआ वह इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया।“
उस बाउट के आख़िरी लम्हों में साक्षी ने बेहतरीन अंदाज़ में प्वाइंट हासिल किया था जिसने उन्हें कांस्य पदक विजेता बना दिया था।
साक्षी ख़ुशी से मैट पर झूम रहीं थीं और उनके कोच ने उन्हें अपने कंधों पर उठा लिया था, और साक्षी के हाथों में भारतीय तिरंगा लहरा रहा था। ये वह पल था जो आज भी भारतीय खेल प्रशंसकों के ज़ेहन में ज़िंदा है।
साक्षी मलिक का भारवर्ग अब बदल गया है और वह अभी भी इस इंतज़ार में हैं कि टोक्यो 2020 के लिए वह क्वालिफ़ाई कर सकें, अगर ऐसा होता है तो देश को उनसे कुछ वैसी ही उम्मीद होगी जो सुशील कुमार ने किया था।