ब्रॉक लैसनर की तारीफ जितनी की जाएगी उतना कम है। लैसनर ने अपने करियर में जिन-जिन प्रोफेशन को चुना वहां सफलता के झंडे गाड़े हैं। कॉलेज के दिनों में ब्रॉक लैसनर एमैच्योर रैसलिंग के चैंपियन बने।wwe में सबसे कम उम्र में चैंपियन और फिर UFC में जाकर अपना लोहा उन्होंने मनवाया।
आज हम जिस ब्रॉक लैसनर को जानते हैं, शायद वैसा हो पाना मुश्किल था अगर उनकी एक समस्या सामने ना आई होती। दरअसल सिर्फ ब्रॉक लैसनर के हार्डकोर फैंस को ही पता होगा कि द बीस्ट कलर ब्लाइंडनैस के शिकार है। यानी वो रंगों की सही से पहचान नहीं कर पाते। इसका ये मतलब नहीं है कि ब्रॉक को सब कुछ ब्लैक एंड वाइट दिखता है। लैसनर लाल-हरे रंग की ब्लाइंडनैस का शिकार हैं, इस वजह से वो आम लोगों की तरह रंगों को सही से नहीं पहचान पाते। यही कलर ब्लाइंडनैस उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी सौगात बन गई।
द बीस्ट का जन्म जर्मन मूल के किसान परिवार में हुआ था। जब वो 17 साल के थे तो उनके स्कूल में आर्मी के कुछ लोग भर्ती के लिए आए। आर्मी वाले के कहने पर ब्रॉक लैसनर ने आर्मी नेशनल गार्ड को ज्वाइन कर लिया।
दरअसल ब्रॉक लैसनर नेशनल गार्ड में विस्फोटकों वाले विभाग में काम करना चाहते थे लेकिन उनकी कलर ब्लाइंडनैस की वजह से उन्हें ऑफिस का काम दिया गया। उसके बाद लैसनर वहां ज्यादा समय तक नहीं टिके और फिर रैसलिंग की प्रैक्टिस में लग गए।
अगर पूर्व UFC वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन को क्लरब्लाइंड नहीं होती तो शायद उन्हें नेशनल गार्ड में विस्फोटकों के साथ काम करने की इजाजत मिल जाती है और वो आगे जाकर अमेरिकी सेना का हिस्सा बन जाते। लेकिन कलर ब्लाइंडनैस की वजह से उनके करियर की दिशा और दशा दोनों बदल गई।शायद तभी कहा जाता है कि जिंदगी में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे एक वजह होती है।