नवंबर 1989 में न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया का पर्थ टेस्ट में आमना सामना हुआ और ये इतिहार के रोमांचक टेस्ट में से एक बन गया । न्यूज़ीलैंड ने टॉस जीतकर पहले गेंदाबाज़ी का फैसला किया और डेविड बून की 200 रनों की पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलियाई टीम ने पहली पारी में 9 विकेट खोकर 521 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया । जवाब में उतरी कीवी टीम की पारी महज 231 रन पर ही सिमट गई और मर्व ह्यूज ने 4 विकेट झटके। न्यूज़ीलैंड को फोलोऑन मिला और फिर दूसरे पारी में भी न्यूज़ीलैंड की शुरुआत खराब रही और महज़ 11 रन पर उन्होंने 2 विकेट खो दिए । बांय हाथ के बल्लेबाज़ मार्क ग्रेटबैच ने एक एंड बांध कर रखा जबकि दूसरे एंड से विकेट का पतन जारी रहा और चौथे दिन का खेल खत्म होने तक न्यूज़ीलैंड संकट की स्थिति में थी और 168 रन पर 4 विकेट खो चुकी थी। पांचवे दिन ग्रेटबैच ने वहीं से शुरु किया जहां उन्होंने चौथे दिन अपनी पारी को छोड़ा था , लेकिन न्यूज़ीलैंड को जल्दी-जल्दी जेफ क्रो और इयान स्मिथ का विकेट गिरने से झटके लगे। क्रिस केर्न्स क्रीज पर आए और उन्होंने ग्रेटबैच के साथ मिलकर सातवें विकेट के लिए महत्वपूर्ण 45 रन की साझेदारी की। केर्न्स के आउट होने के बाद मार्टिन स्नीडन बल्लेबाज़ी करने आए और ग्रिट के साथ संघर्ष करते हुए 88 रन की नाबाद साझेदारी कर मैच ड्रॉ करा दिया। ग्रेटबैक को उनकी 485 गेंद पर 146 रन की मैच बचाने वाली पारी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।