आईपीएल का एक और सीजन शुरू हुआ ही था कि एक नए विवाद ने जन्म ले लिया। राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ किंग्स इलेवन पंजाब के कप्तान रविचंद्रन अश्विन ने जोस बटलर को मांकडिंग आउट कर दिया। यह घटना तब हुई जब राजस्थान की टीम एक विकेट खो कर 108 रन बना चुकी थी और उन्हें 43 गेंदों में केवल 77 रन चाहिए थे, इस समय नॉन स्ट्राइकर पर बटलर आतिशी फॉर्म में थे और 43 गेंदों पर 69 रन बना चुके थे। इस रन आउट ने मैच का रुख इस तरह बदला कि इसके बाद किंग्स की टीम ने अपने अंतिम 7 विकेट जल्दी-जल्दी खो दिए और मैच 14 रनों से हार गयी।
जहां क्रिकेट के दिग्गज अश्विन के इस बर्ताव को सही बता रहे हैं तो वहीँ कई इसे खेल भावना के विरुद्ध भी बता रहे हैं। अगर आप क्रिकेट के नियमों के अनुसार जाएँ तो अश्विन पूरी तरह सही हैं। ओवर के पहली 2-3 गेंदों में बटलर क्रीज़ से निकल रहे थे जिसे अश्विन ने नोटिस किया और पांचवीं गेंद पर उन्होंने नॉन स्ट्राइक छोर पर गिल्लियां बिखेर दी। थर्ड अंपायर से रिव्यू लिया गया, नियम के अनुसार बटलर को पवेलियन वापस जाना पड़ा।
अब नियमों को छोड़कर अगर खेल भावना के बारे में बात करें तो यह कहना सही होगा कि क्रिकेट को "जेंटलमैन्स गेम" कहा जाता है और अश्विन ने यहां पूरी तरह इसके विपरीत कार्य किया। क्रिकेट के इतिहास में ऐसी न जाने कितनी ही घटनाएं हो चुकी हैं जब किसी खिलाड़ी ने नियमों के दायरे में रह कर फैसला लिया किन्तु हम सब ने मिल कर उनको खलनायक घोषित कर दिया।
बात करते हैं 1981 के ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूज़ीलैंड मैच के बारे में जिसमें ब्लैक कैप्स को आखिरी गेंद पर छह रन चाहिए थे, उस समय कंगारू टीम के कप्तान ग्रेग चैपल ने अपने युवा गेंदबाज़ ट्रेवर चैपल से अंडरआर्म गेंदबाज़ी करने को कहा। गौर फरमाइए कि उस समय यह नियमों के अनुसार था किन्तु ऑस्ट्रेलियाई टीम ने खेल भावना के विपरीत परिचय दिया जिसकी आज तक निंदा होती है। क्या आप कहेंगे कि ग्रेग चैपल उस समय सही थे क्योंकि उन्होंने नियमों के अनुसार गेंदबाज़ी कराई थी?
चलिए बात करते हैं 2007-08 ऑस्ट्रेलिया बनाम भारत टेस्ट सीरीज के बारे में जो विवादों से घिरा हुआ था। सिडनी टेस्ट में सौरव गांगुली का एक कैच पोंटिंग ने स्लिप्स में पकड़ा जो कि काफी विवादित था, टीवी रीप्ले में दर्शकों को लगा कि शायद क्लीन कैच नहीं था। अंपायर मार्क बेंसन ने थर्ड अंपायर को रेफर नहीं किया और पोंटिंग से पूछा। सहज रूप में पोंटिंग ने खुद का कैच सही बताया और ऊँगली ऊपर कर के गांगुली को आउट करार दिया। आपको बता दें कि मैच से पहले यह तय हुआ था कि किसी भी निर्णय के लिए फील्डर ईमानदार रहेंगे, इसलिए अंपायर ने पोंटिंग से इस बारे में पूछा था। इस विवाद के बाद पोंटिंग को आज तक लोग 'चीटर' करार देते हैं। अब फिर से बात आ जाती है नियम बनाम खेल भावना का - नियमों के अनुसार पोंटिंग सही थे पर क्या खेल भावना के तहत वह सही थे?
आगे बात करें तो कितनी दफा आपने यह देखा होगा कि बल्लेबाज़ के बैट का हल्का बाहरी किनारा लेकर गेंद कीपर के दस्तानों में चली जाती है लेकिन बल्लेबाज़ खुद से खुद को आउट करार न देते हुए क्रीज़ पर ही रुक जाता है जब तक उसको अंपायर आउट करार न दे दे। कुछ खिलाड़ी इसके विपरीत, अगर उनको पता होता है कि उन्होंने गेंद को निक किया है तो वह खुद से पवेलियन चले जाते हैं। नियमों के अनुसार बैट्समैन का हक़ है कि वह अंपायर के आउट देने की प्रतीक्षा करे, किन्तु क्या हम सब ने मिलकर किसी भी ऐसे खिलाड़ी की निंदा नहीं की?
क्योंकि आज यह एक इंग्लिश बल्लेबाज़ के साथ अश्विन ने किया है तो शायद इमोशन के कारण हमें अश्विन सही नज़र आएं पर सोचिये अगर किसी ऑस्ट्रेलियाई या पाकिस्तानी गेंदबाज़ ने ऐसा धोनी या कोहली के साथ किया होता, क्या हम तब यह कहते कि वह नियमों के अनुसार सही थे?
आईपीएल एक ऐसा टूर्नामेंट है जिसे सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के हर कोने में देखा जाता है। इन दर्शकों में कई युवा हैं। भारत में एक क्रिकेटर को भगवान का दर्ज़ा दिया जाता है, तो क्या यह एक भारतीय क्रिकेटर की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह खेल भावना के साथ खेल और युवा पीढ़ी को भी सिखाएं? हम सब इतने भाग्यशाली है जिन्हे सचिन, द्रविड़, कुंबले, लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी नसीब हुए जिन्होंने हमेशा खेल भावना से खेल को खेला और हमें इतनी सारी यादें दी।
अश्विन ने बटलर को तब मांकडिंग आउट किया जब पंजाब की टीम को एक विकेट की सख्त जरुरत थी, बटलर का विकेट उस समय कितना महत्त्पूर्ण था यह अब तक आप जान ही गए होंग। किन्तु अगर यह कार्य एक चेतावनी दे करते तो शायद अश्विन की इतनी आलोचना आज न हो रही होती। जायज़ है कि चेतावनी का नियम भी रूल बुक में कहीं नहीं है पर यह खेल भावना के साथ जाता है। शायद अश्विन ने यह हताश हो कर किया और नियमों के अनुसार ही किया पर जो हो गया सो हो गया, अश्विन अब एक जेंटलमैन की तरह बटलर से माफ़ी मांग लेंगे तो छोटे नहीं हो जायेंगे।
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