वेटलिफ्टर अचिंत श्यूली ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में देश को तीसरा गोल्ड मेडल दिलवाया और सभी का दिल जीत लिया। 20 साल के अचिंत ने 73 किलोग्राम भार वर्ग में 313 किलो वजन उठाया और नया गेम्स रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड अपने नाम किया। लेकिन अचिंत आज इस मुकाम पर नहीं खड़े होते अगर 7 साल पहले उनके बड़े भाई आलोक ने अपना करियर दांव पर नहीं लगाया होता।
मूल रूप से पश्चिम बंगाल के देउलपुर के रहने वाले अचिंत का बचपन गरीबी में बीता। पिता रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे तो घर पर अचिंत कपड़ों पर जरी की बुनाई कर छोटी उम्र में ही परिवार का हाथ बंटाते थे। घर पर मुर्गियां भी पाली थीं ताकि थोड़ी आमदनी और हो सके। अचिंत के बड़े भाई आलोक ने आस-पास के नौजवानों को देख वेटलिफ्टिंग करनी शुरु की। अचिंत ने भी 12 साल की उम्र में बड़े भाई के साथ नजदीकी जिम जाना शुरु किया। अचिंत में काफी हुनर था। एक साल के अंदर ही अचिंत के पिता का मृत्यु हो गई। परिवार को गहरा झटका लगा। अचिंत उस समय 8वीं क्लास में थे।
श्यूली परिवार में पैसों की किल्लत हुई तो अचिंत के बड़े भाई आलोक ने बहुत ही अहम फैसला लिया। अचिंत को सुबह 5 बजे उठकर दौड़ के लिए जाना होता था, फिर घर आकर बुनाई करनी होती थी, इसके बाद पास के जिम जाकर प्रैक्टिस और स्कूल जाना तथा फिर फिर ट्रेनिंग। आलोक ने छोटे भाई की ये हालत देख खुद वेटलिफ्टिंग छोड़ जरी के कपड़ों पर कारीगरी का काम शुरु कर दिया ताकि अचिंत को वेटलिफ्टिंग ना छोड़नी पड़े और घर पर पैसे आते रहें। आलोक भी आज शायद देश के लिए खेल रहे होते, लेकिन उन्होंने छोटे भाई को उड़ान के पंख दिए और आज उसी भाई ने परिवार समेत पूरे देश का मान बढ़ाया है।
अचिंत ने कॉमनवेल्थ खेलों में जीत के बाद अपने गोल्ड मेडल को कोच विजय शर्मा और भाई आलोक को ही समर्पित किया। अचिंत ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके परिवार ने जिस परेशानी को देखा और झेला उसके बाद भाई की मदद के दम पर ही वो आज इस मुकाम पर हैं।