सौरव गांगुली की आत्मकथा ‘’ए संचुरी इज़ नॉट इनफ़’’ अपने नाम की ही तरह ख़ुलासों में भी कम नहीं है। इस किताब में दादा ने एक नहीं कई ख़ुलासे किए हैं, फिर चाहे संन्यास की असली वजह हो या फिर चैपल के साथ उनके विवाद की सच्चाई हो। दादा ने ठीक उसी तरह लिखा है जैसा वह मैदान पर अपने बिंदास और आक्रामक खेल के लिए जाने जाते थे। बल्लेबाज़ी करते हुए जैसे दादा आगे निकल गेंद को स्टैंड्स में पहुंचाने के लिए अपने आक्रामक खेल के लिए मशहूर थे तो ऑफ़ साइड पर अपनी नज़ाकत के लिए तो वह ख़ुदा के बाद ही थे। इस किताब में भी दादा ने कई बड़े ख़ुलासे किए हैं तो बीच में बीच में अपने फ़ैंस को कुछ मज़ेदार बातों से भी रु-ब-रु कराया है जिसे पढ़कर चेहरे पर मुस्कान और दादा का एक अलग छिपा हुआ नटखट रूप भी देखने को मिलता है। दशहरे के दौरान हरभजन सिंह की पगड़ी पहन सरदार बनकर पंडाल में जाने की बात तो अब पुरानी हो गई। दादा ने इस किताब में एक ऐसा वाक़्या भी बताया है जो जानकर आपको दादा के नॉन वेज प्रेमी होने का अहसास भी होगा और साथ ही पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति की परेशानी भी सामने आ जाएगी। दरअसल ये बात 2004 के पाकिस्तान दौरे की है जब भारत ने पहली बार पाकिस्तान को उन्हीं के घर में वनडे सीरीज़ में शिकस्त दी थी। इस सीरीज़ जीत के बाद दादा बेहद ख़ुश थे और उन्हें पता चला कि उनके कुछ दोस्त लाहौर के मशहूर गावलमंडी जा रहे हैं जो कबाब और तंदूरी पकवान के लिए मशहूर है। दादा का भी दिल था जाने का लेकिन लाहोर के होटल पर्ल कॉन्टिनेन्टल को पूरी तरह से बंदूकधारियों ने घेर रखा था, यहां तक की होटल के बाहर टैंक तक मौजूद थे। यानी सौरव गांगुली का बाहर जाना मुमकिन नहीं था, पर दादा एक बार जो ठान लेते थे तो कर के ही रहते थे। दादा इसी वजह से तो टीम इंडिया में दोबारा वापसी भी कर पाए थे और चैपल को जवाब भी दिया था। बहरहाल, सौरव गांगुली ने इसके लिए आधी रात का समय मुनासिब समझा और अपने दोस्त गौतम भट्टाचार्या (जो दादा की आत्मकथा के सहायक लेखक भी हैं) को इसके लिए राज़ी किया। हालांकि ये इतना आसान नहीं था क्योंकि किसी को भनक भी लग जाती तो दादा का बाहर निकलना नामुमकिन हो जाता। सौरव ने बस टीम मैनेजर रत्नाकर शेट्टी को बोला कि किसी को बोलना मत मैं तुरंत आ जाउंगा, इस पर शेट्टी ने कहा भी कि ये नियम का उल्लंघन है लेकिन दादा कहां मानने वाले थे कुछ, उन्होंने कहा कि बस किसी को बोलना मत। इसके बाद दादा और उनके दोस्त पीछे के दरवाज़े से बाहर निकले, दादा ने बड़ी सी टोपी पहन रखी थी जिससे उनका आधा चेहरा ढक गया था। अब दोनों एशिया के मशहूर गावलमंडी पहुंच चुके थे, वहां एक शख़्स दादा के पास आया और कहने लगा, ‘’आप सौरव हो न ?’’ दादा ने आवाज़ बदलकर कहा कि, ‘’कौन सौरव, मैं किसी सौरव को नहीं जानता”। इस पर वह शख़्स कन्फ़्यूज़ हो गया और ये कहते हुए आगे बढ़ गया कि आपकी शक़्ल बिल्कुल सौरव की तरह है। इसी तरह एक और शख़्स ने दादा को पहचानते हुए जीत की मुबारक देने के लिए आया, लेकिन दादा ने उसे भी ऐसा ज़ाहिर किया कि वह सौरव नहीं हैं। इस पर उनके दोस्त ने कहा कि तुम बहुत सही एक्टिंग कर रहे हो और दोनों हंसते हंसते कबाब का मज़ा लेने लगे। लेकिन दादा की क़िस्मत में कुछ और लिखा था, इत्तेफ़ाक से उस वक़्त उनके सामने वाले टेबल पर मशहूर पत्रकार राजदीप सरदेसाई और तब के भारतीय सूचना मंत्री रवि शंकर प्रसाद भी खाने के लिए बैठे हुए थे। राजदीप ने सौरव को पहचानते हुए आवाज़ लगाई और बुलाने लगे, देखते ही देखते वहां भीड़ इकट्ठा हो गई और सभी ने दादा को पहचान लिया। अब परेशानी बढ़ गई थी, तुरंत ही पाकिस्तान पुलिस ने दादा और उनके दोस्त को कार में बिठाया और होटल की ओर ले जाने लगे, रास्ते में एक बाइक सवार दादा की कार के पास आकर शीशा नीचे करने का इशारा करने लगा। इस पर दादा के दोस्त ने मना किया और कहा कि शीशा मत नीचे करना ये पाकिस्तान है इसके पास बम और बंदूक भी हो सकती है, लेकिन सौरव हंसे और शीशा नीचे कर दिया। वह शख़्स दादा का बहुत बड़ा फ़ैन था और कहने लगा, ‘’आप शानदार हो, काश आपकी ही तरह पाकिस्तान के पास भी कप्तान होता’’। अब दादा होटल वापस पहुंच चुके थे, चूंकि वह कप्तान थे इसलिए ज़्यादा फटकार नहीं सुनी। पर उसके बाद जो हुआ वह हैरान करने वाला था, दादा जब अपने कमरे में गए तो फ़ोन की घंटी बजी, दादा ने उठाया तो पता चला कि राष्ट्रपति आपसे बात करना चाहते हैं। इस पर दादा लिखते हैं कि उस वक़्त समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या करूं, इतना नर्वस मैं कभी वसीम अकरम या शोएब अख़्तर की गेंदों का सामना करते नहीं हुआ था जितना अब था। अगली आवाज़ उस वक़्त के पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ की थी, जो कह रहे थे ‘’सौरव अगर दोबारा कभी आपको कबाब खाने का दिल करे तो बता दिया करें, या अगर बाहर जाना हो तो भी ज़रूर सूचना दे दिया करें ताकि आपको सुरक्षाकर्मियों के साथ बाहर ले जाया जाए। पर इस तरह एंडवेंचर का मज़ा लेकर हमारी परेशानी न बढ़ाएं।‘’ खाने पीने को लेकर दादा ने एक और छोटा से वाक़्ये का ज़िक्र किया है, ये तब का है जब ग्रेग चैपल से बल्लेबाज़ी का मशवरा लेने दादा 7 दिनों के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे। तब दिन भर में चैपल दो सत्रों में दादा को बल्लेबाज़ी टिप्स देते थे और बीच में लंच का समय होता था। सौरव गांगुली ने लिखा है कि सिडनी क्रिकेट ग्राउंड के बाहर लंच के दौरान उनका पसंदीदा भोजन रोस्ट बीफ़ सैंडविच था।