पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसके बारे में ना तो अधिक जानकारी दी जाती है और ना ही इसके बारे में बात की जाती है। ये एक ऐसा डिसऑर्डर है जो प्रेग्नेंसी के बाद या उस समय के दौरान होता है जब एक गर्भवती महिला एक बच्चे को जन्म देने वाली होती है।
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पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर दरअसल एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसको विश्व में लगभग नौ प्रतिशत महिलाएं अनुभव करती हैं लेकिन इसका प्रभाव मनःस्थिति पर एक लंबे समय तक रहता है। इस डिसऑर्डर के दौरान महिलाएं काफ मानसिक, शारीरिक और सोच के बदलाव के दौर से गुजरती हैं। यदि आप एक महिला हैं तो आपको ये जानना चाहिए और अगर आप एक पुरुष हैं तो ये जानकारी आपको अपनी पत्नी की मनःस्थिति समझने और उनकी मदद करने में सहायक होगी।
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पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर कब होता है
पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर अमूमन बच्चे के जन्म के पहले या उसके बाद होता है। ये वो दौर होता है जब बच्चे को जन्म देने वाली महिला के मन में अजीब ख्याल आते हैं जो उनकी सोच को निर्धारित करते हैं। इस दौरान वो कई बार खुद को सबसे काफी दूर और अलग महसूस करती हैं। इसमें चिड़चिड़ापन और जल्द गुस्सा हो जाना शामिल है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान एक महिला कई भावनाओं से दो चार होती हैं और इसलिए उन्हें पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। यहाँ ये बात ध्यान देना अनिवार्य है कि पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर और पोस्ट पार्टम मूड डिस्टर्बैंसेस में फर्क है और दोनों को एक समान नहीं समझा जाना चाहिए।
पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर का उपचार
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ द्वारा चौबीस दिसंबर 2020 को एंटोनिओ हेर्नानडेज़-मार्टीनेज़ के हवाले से जारी की गई रिसर्च के मुताबिक पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर से गुजर रही महिलाओं के लिए इस डिसऑर्डर से दो चार हो पाना तभी संभव है जब उनको पूरा समर्थन मिले और लोग उनकी परेशानी को समझें।
पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर को ठीक करने में कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी काफी लाभकारी है। इसके साथ साथ साइकोथेरेपी एवं ग्रुप थेरेपी भी इस स्थिति में काफी कारगर साबित होती है। इन थेरेपियों के अलावा लोगों के साथ घुलना मिलना और प्रेग्नेंट महिला को लगातार अच्छा महसूस कराना भी इस पोस्ट पार्टम डिसऑर्डर को ठीक करने में कारगर है।