पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक ऐसा मानसिक डिसऑर्डर है जो किसी के साथ हुए या देखे गए बुरे घटनाक्रम के बाद हो सकता है। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के मरीज़ों के लिए उस बुरी घटना के प्रभाव से बाहर आना काफी मुश्किल होता है लेकिन इसका ये अर्थ कतई नहीं है कि इस डिसऑर्डर का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के शिकार लोगों के लिए जीवन की दिशा और दशा बदल जाती है लेकिन इससे पहले कि हम उसके बारे में बात करें आइए आपको बताते हैं कि ये कौन सा डिसऑर्डर है और इससे क्या होता है।
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पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर क्या होता है?
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर दरअसल एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें यदि किसी इंसान के साथ या उसके सामने कोई वीभत्स घटना या स्थिति हो रही होती है तो ये उस इंसान के मन मस्तिष्क पर एक ऐसा प्रभाव डालता है जिसकी वजह से उसे परेशानी होती है। ये परेशानी शारीरिक और मानसिक रूप में हो सकती है लेकिन इसके दुष्प्रभाव इंसान के मनःस्थल पर सदा के लिए रह जाते हैं और अगर इनका इलाज ना किया जाए तो उससे काफी नुकसान हो सकता है।
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इस डिसऑर्डर से इंसान को किस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है
इस डिसऑर्डर के मरीज को बार बार उस घटना के सपने आते हैं, परेशानियाँ होती हैं जिसमें चिंता से लेकर भयावह सपने आना शामिल है। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से गुजर रहे लोगों को विश्वास करने में परेशानी आती है। वो हर किसी को शक की निगाह से देखते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि उनके साथ खड़ा इंसान उनके साथ कुछ बुरा ही करने वाला है। ऐसी स्थिति में इंसान को अपनी दिनचर्या के काम करने में भी परेशानी होती है।
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पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का इलाज क्या है
यदि आप या आपके जानने में कोई पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का मरीज है तो ये जान लेना बेहद आवश्यक है कि ऐसे इंसान को इलाज के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी या टॉक थेरेपी काफी कारगर साबित होती है।
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इसके अलावा एक्सपोजर थेरेपी के माध्यम से भी इंसान को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है। टॉक और एक्सपोजर थेरेपी में आपको बातचीत और उस स्थिति को दोबारा से एक सुरक्षित वातावरण में जीने का मौका मिलता है जिससे कई बार लोगों के मन में से वो ड़र चला जाता है।
थेरेपी के इस्तेमाल से भी यदि इंसान के रवैये में कोई बदलाव नहीं देखने को मिलता है तो ऐसी स्थिति में दवाइयों के सहारे इस डिसऑर्डर को खत्म करने का प्रयास किया जाता है।